अनुक्रमणिका
Class 5th Hindi कविता – खिलौने वाला
‘खिलौनेवाला – khilaunewala kavita Class 5th’ की सुभद्रा कुमारी चौहान जी द्वारा लिखी एक बहुत ही खूबसूरत कविता है …जिसमें उन्होंने एक बच्चे के मन की कोमल भावनाओं को अभिव्यक्त किया है .. |
अक्सर बच्चे बचपन में अपने माता-पिता से खिलौने मॉँगने की जिद करने लगते हैं, और जब हमारे गाँव में या शहर की गलियों में खिलौनेवाला आता है तो बच्चे अपनी मनपसंद के तरह-तरह के खिलौने लेते भी हैं.. कोई गुड्डा, कोई गुड़िया, तो कोई गाडी, आदि-आदि |
मगर इस कविता में एक ऐसा बच्चा भी है जो भगवान राम के चरित्र से बड़ा प्रभावित है, जो बाकि बच्चों की तरह खिलौने नहीं, बल्कि राम जी के अस्त्र, धनुष-बाण लेना चाहता है .. ताकि वो भी उन के जैसे अस्त्र चला सके और अन्यायियों का जड़ से खात्मा कर सके.. ऐसी कोमल और मनमोहक भावनाएँ एक बच्चे के माध्यम से इस कविता में व्यक्त की गयी हैं…
इस खूबसूरत खिलौनेवाला-khilaunewala कविता पर मैंने अपना स्वर देने की कोशिश की है.. उम्मीद है आपको पसंद आएगी |
Khilaunewala Kavita –
खिलौनेवाला कविता – सुभद्रा कुमारी चौहान
वह देखो माँ आज
खिलौनेवाला फिर से आया है।
कई तरह के सुंदर-सुंदर
नए खिलौने लाया है।
हरा-हरा तोता पिंजड़े में
गेंद एक पैसे वाली
छोटी सी मोटर गाड़ी है
सर-सर-सर चलने वाली।
सीटी भी है कई तरह की
कई तरह के सुंदर खेल
चाभी भर देने से भक-भक
करती चलने वाली रेल।
गुड़िया भी है बहुत भली-सी
पहने कानों में बाली
छोटा-सा ‘टी सेट’ है
छोटे-छोटे हैं लोटा थाली।
छोटे-छोटे धनुष-बाण हैं
हैं छोटी-छोटी तलवार
नए खिलौने ले लो भैया
ज़ोर-ज़ोर वह रहा पुकार।
मुन्नू ने गुड़िया ले ली है
मोहन ने मोटर गाड़ी
मचल-मचल सरला करती है
माँ ने लेने को साड़ी
कभी खिलौनेवाला भी माँ
क्या साड़ी ले आता है।
साड़ी तो वह कपड़े वाला
कभी-कभी दे जाता है
अम्मा तुमने तो लाकर के
मुझे दे दिए पैसे चार
कौन खिलौने लेता हूँ मैं
तुम भी मन में करो विचार।
तुम सोचोगी मैं ले लूँगा।
तोता, बिल्ली, मोटर, रेल
पर माँ, यह मैं कभी न लूँगा
ये तो हैं बच्चों के खेल।
मैं तलवार खरीदूँगा माँ
या मैं लूँगा तीर-कमान
जंगल में जा, किसी ताड़का
को मारुँगा राम समान।
तपसी यज्ञ करेंगे, असुरों-
को मैं मार भगाऊँगा
यों ही कुछ दिन करते-करते
रामचंद्र मैं बन जाऊँगा।
यही रहूँगा कौशल्या मैं
तुमको यही बनाऊँगा।
तुम कह दोगी वन जाने को
हँसते-हँसते जाऊँगा।
पर माँ, बिना तुम्हारे वन में
मैं कैसे रह पाऊँगा।
दिन भर घूमूँगा जंगल में
लौट कहाँ पर आऊँगा।
किससे लूँगा पैसे, रूठूँगा
तो कौन मना लेगा
कौन प्यार से बिठा गोद में
मनचाही चींजे़ देगा।
सुभद्रा कुमारी चौहान |