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शुद्ध वर्तनी शब्द सूची PDF सहित
परीक्षा की दृष्टि से शुद्ध और अशुद्ध शब्द
शुद्ध वर्तनी शब्द – अच्छी हिंदी बोलने व लिखने के लिए जरूरी है शुद्ध वर्तनी की पहचान का होना, इसके अभाव में हम अक्सर गलतियाँ करते हैं, उच्चारण करते समय वाचन संबंधी अशुद्धि और लिखते समय वर्तनी संबंधी अशुद्धि। हम जिस देवनागरी लिपि में हिंदी भाषा बोलते व लिखते हैं, उसका शुद्ध उच्च्चारण व शुद्ध वर्तनी की पहचान होनी बहुत जरूरी है अन्यथा अर्थ का अनर्थ होने में देरी नहीं लगती जैसे – चिंता का चिता।
यह बात मन से निकाल देनी चाहिए कि, हिंदी सीखने की आवश्यकता नहीं है। शुद्ध और अच्छी हिंदी बोलने-लिखने के लिए यह आवश्यक है कि, हम शब्दों और वाक्यों का शुद्ध प्रयोग सीखें। भ्रम और अज्ञान के कारण भाषा में अनेक अशुद्धियाँ होती हैं। इसीलिए इस लेख में हम इसी वर्तनी संबंधी अशुद्धियों को दूर करने का प्रयास करेंगे साथ ही शुद्ध और अशुद्ध वर्तनी शब्दों की सूची PDF सहित उपलब्ध कराएंगे।
वर्तनी क्या/किसे कहते हैं
वर्णों के सार्थक क्रम में लिखने की रीति को ‘वर्तनी’ कहा जाता है। इसे ‘अक्षरी’ या ‘हिज्जे’ (Spelling) भी कहा जाता है। वर्तनी का सीधा संबंध उच्चारण से है, हिंदी में जो बोला जाता है वही लिखा भी जाता है। यदि उच्चारण अशुद्ध होगा तो वर्तनी भी अशुद्ध होगी।
प्रायः अपनी मातृभाषा या बोली के कारण या व्याकरण संबंधी अभाव के कारण वर्तनी में अशुद्धियाँ आ जाती हैं लेकिन सही ज्ञान होने से वर्तनी को शुद्ध भी किया जा सकता है। चलिए विस्तार में जानते हैं –
हिंदी वर्तनी का मानकीकरण
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने 1961 ई. में एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की थी। इस समिति ने अप्रैल, 1962 ई. में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत् की, जिन्हें सरकार ने स्वीकृत किया। इन्हें 1967 ई. में ‘हिंदी वर्तनी का मानकीकरण’ शीर्षक पुस्तिका में व्याख्या तथा उदाहरण सहित प्रकाशित किया गया था। लेकिन इनका व्यापक प्रचार-प्रसार न हो पाने के कारण आज भी देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी के मानक रूप का प्रयोग नहीं हो पा रहा है।
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की ‘वर्तनी समिति’ ने 1962 ई. में तथा हिंदी के व्याकरणाचार्यों द्वारा वर्तनी सुधार संबंधी नियम जो सुझाए गए हैं, वे निम्नलिखित है :-
वर्तनी शुद्धि के नियम –
शुद्ध वर्तनी के इन नियमों को पढ़ लोगे तो कभी परीक्षाओं में गलतियाँ नहीं करोगे।
- हिंदी के विभक्ति-चिह्न, सर्वनाम शब्दों को छोड़कर शेष सभी प्रसंगों में, शब्दों से अलग लिखे जाएँ। जैसे – सीता ने कहा, राम को। सर्वनाम में – तुमने, आपको, मुझसे । अपवाद – यदि सर्वनाम शब्दों के साथ दो विभक्ति चिह्न हों, तो उनमें पहला सर्वनाम से मिला हुआ और दूसरा अलग लिखा जाए। जैसे – उसके लिए, इनमें से।
- तक, साथ आदि अव्यय अलग लिखे जाएँ । जैसे – आपके साथ, यहाँ तक।
- पूर्वकालिक प्रत्यय ‘कर’ क्रिया से मिलाकर लिखा जाए । जैसे – मिलाकर, खाकर, पीकर।
- द्वंद्व समास पदों के बीच हाइफन (योजक चिह्न) का प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे – राम-लक्ष्मण, शिव-पार्वती।
- सा, जैसा आदि सारूप्यवाचकों के पूर्व योजक-चिह्न का प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे – तुम-सा, राम-जैसा।
- संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी में सामान्यतः संस्कृत वाला रूप ही रखा जाए। किंतु, जिन शब्दों के प्रयोग में हिंदी में हलंत का चिह्न लुप्त हो चुका है, उनमें हलंत लगाने की कोशिश न की जाए। जैसे – महान, विद्वान, जगत। किंतु संधि या छंद समझाने की स्थिति हो, तो इन्हें हलंत रूप में ही रखना होगा । जैसे – जगत् + नाथ, विद्वान् + लिखति।
- जहाँ वर्गों के पंचमाक्षरों के बाद उसी वर्ग के शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो वहाँ अनुस्वार का ही प्रयोग किया जाए । जैसे – वंदना, नंद, नंदन, अंत, गंगा, संपादक आदि।
- नहीं, मैं, हैं, में इत्यादि के ऊपर लगी मात्राओं को छोड़कर शेष आवश्यक स्थानों पर चंद्रबिंदु का प्रयोग करना चाहिए, नहीं तो हंस और हँस तथा अँगना और अंगना में अर्थभेद स्पष्ट नहीं होगा।
- अरबी-फारसी के वे शब्द जो, हिंदी के अंग बन चुके हैं और जिनका विदेशी ध्वनियों का हिंदी ध्वनियों में रूपांतर हो चुका है, उन्हें हिंदी के रूप में ही स्वीकार किया जाए। जैसे – जरूर, कागज आदि। किंतु, जहाँ उनका शुद्ध विदेशी रूप में प्रयोग अभीष्ट हो, वहाँ उनके हिंदी में प्रचलित रूपों में यथास्थान ‘नुक्ते’ का प्रयोग किया जाए। ताकि उनका विदेशीपन स्पष्ट रहे। जैसे – फ़ारसी, ज़मीन।
- अंग्रेजी के जिन शब्दों में अर्द्ध ‘ओ’ ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके शुद्ध रूप का हिंदी में प्रयोग अभीष्ट होने पर ‘आ’ की मात्रा पर अर्द्धचंद्र का प्रयोग किया जाए। जैसे – डॉक्टर, कॉलेज, हॉस्पिटल।
- संस्कृत के जिन शब्दों में विसर्ग का प्रयोग होता है, वे यदि तत्सम रूप में प्रयुक्त हों तो विसर्ग का प्रयोग अवश्य किया जाए। जैसे – स्वान्तः सुखाय, प्रातःकाल, दुःख। परंतु यदि उस शब्द के तद्भव रूप में विसर्ग का लोप हो चुका है, तो उस रूप में विसर्ग के बिना भी काम चालाया जा सकेगा ।
- कुछ शब्दों का अंतिम स्वर ह्रस्व इ ही होना चाहिए जो बोलचाल में दीर्घ ई हो गए हैं। उदाहरण – निधी, अंजली, उक्ती, अतिथी, समिती, भारवी आदि के शुद्ध रूप – निधि, अंजलि, उक्ति, अतिथि, भारवि ही होना चाहिए।
- संस्कृत के शब्दों में चंद्रबिंदु का प्रयोग नहीं होता क्योंकि वहाँ स्वरों का उच्चारण अनुनासिकतामय नहीं है। जबकि अनुस्वार एवं अनुनासिक व्यंजन युक्त शब्द हिंदी में अनुनासिक में बदल गए हैं। जैसे – अन्धकार से अँधेरा, ग्रंथि से गाँठ, बंध से बाँध आदि।
- शब्द के प्रारम्भ में दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ आदि) के आने पर अनुनासिक/चंद्रबिंदु का प्रयोग होता है। उदाहरण – आँख, गाँधी, आँधी, आँसू, मूँछ तथा राँगा आदि।
- संस्कृत के कुछ शब्दों में इत प्रत्यय लगा देने से अशुद्धि हो जाती है। उदाहरण – क्रोधित, अभिशापित, आकर्षित, प्रफुल्लित, हतोत्साहित शब्द अशुद्ध हैं और इनका शुद्ध रूप होगा – क्रुद्ध, अभिशप्त, आकृष्ट, प्रफुल्ल और हतोत्साह।
- हिंदी में स्वर रहित र् अर्थात् रेफ जहाँ उच्चारित होता है वह उसके आगे वाले व्यंजन पर लगाया जाता है। उदाहरण – परिवर्तन, अंतर्गत, सार्थक, स्वार्थी, आशीर्वाद।
- संस्कृत के कुछ पुल्लिंग शब्दों का स्त्रीलिंग रूप ‘इनी‘ प्रत्यय लगाने से बनता है न कि, नी प्रत्यय लगाने से। जैसे – संन्यासी से संन्यासिनी , सर्प से सर्पिणी और विरह से विरहिणी बनेगा जबकि, संन्यासनी, सर्पणी, विरहणी अशुद्ध होगा।
- हिंदी में भविष्यत् काल में क्रिया का पुल्लिंग बहुवचन रूप एंगे प्रत्यय से बनता है। जैसे – करे से करेंगे, पढ़ से पढेंगे, लिख से लिखेंगे।
- संस्कृत से कुछ शब्दों की विशिष्ट संरचना होती है, जैसे – कवि का स्त्रीलिंग कवयित्री, अनुवाद का अनूदित और रचना करने वाले के लिए प्रचलित शब्द रचयिता है।
- मूर्धन्य ष केवल संस्कृत शब्दों में आता है। जैसे – गवेषणा, भाषा, कषाय, चषक आदि।
- ट वर्ग से पूर्व केवल मूर्धन्य ष आता है। जैसे – षोडश, षडानन, कष्ट आदि।
- कुछ शब्दों के वैकल्पिक रूप होते हैं: जैसे – कोश – कोष, केशर – केसर, कौशल्या – कौसल्या, केशरी – केसरी, कशा – कषा, वशिष्ठ – वसिष्ठ। ये दोनों शब्द शुद्ध हैं।
हिंदी भाषा की शुद्ध वर्तनी के लिए इन नियमों को ठीक से आपको समझ लेना चाहिए, ताकि जब भी कोई शब्द बोलें या लिखें तो अशुद्धि न होने पाए। यहाँ पर हिंदी में प्रचलित वर्तनी संबंधी मुख्य शुद्ध और अशुद्ध शब्दों की सूची दी जा रही है, जिसके अंत में आपको शुद्ध और अशुद्ध शब्दों की PDF भी उपलब्ध हो सकेगी। यह सूची परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों को संज्ञान में रख कर तैयार की गई है, आशा है इस वर्तनी संबंधी शुद्ध और अशुद्ध शब्दों की सूची से आपको बहुत मदद मिलेगी।
सामान्य हिंदी के लिए उपयोगी पुस्तकें
शुद्ध और अशुद्ध शब्द सूची
शुद्ध वर्तनी शब्द
शुद्ध वर्तनी शब्द
शुद्ध वर्तनी की यह सूची, जिनमें हमने शुद्ध और अशुद्ध शब्दों को एक साथ रखा है। परीक्षाओं की तैयारी में आपकी बहुत मदद करेगी, इनमें शुद्ध वर्तनी के उन शब्दों को तो शामिल किया ही है जो विगत परीक्षाओं में अधिकतम प्पूरश्छेन्रूप में गए हैं, साथ ही इस बात का भी पूरा ध्यान रखा है जो आगामी परीक्षाओं में पूछे जा सकते हैं, उम्मीद है आपके लिए ये शुद्ध वर्तनी संबंधी शब्द लाभदायक सिद्ध होंगे । सूची इस प्रकार है -अशुद्ध शब्द | शुद्ध शब्द |
---|---|
अंतर्चेतना | अंतश्चेतना |
अंधेरा | अँधेरा |
अंत्येष्ठि | अंत्येष्टि |
अकस्मात | अकस्मात् |
अगम | अगम्य |
अधिशाषी | अधिशासी |
अट्टारी | अट्टालिका |
अड़यल | अड़ियल |
अभ्यारण्य | अभयारण्य |
अनेकों | अनेक |
अनुदित | अनूदित |
अनुगृह | अनुग्रह |
अनुग्रहित | अनुगृहीत |
अर्थात | अर्थात् |
अंतकरण | अंतःकरण |
अंतर्ध्यान | अंतर्धान |
अंतर्रात्मा | अंतरात्मा |
अंताक्षरी | अंत्याक्षरी |
अत्योक्ति | अत्युक्ति |
अधःगति | अधोगति |
अधोपतन | अधःपतन |
अभिष्ट | अभीष्ट |
अनाधिकार | अनधिकार |
अष्टवक्र | अष्टावक्र |
अमावस | अमावस्या/अमावास्या |
अधःवस्त्र | अधोवस्त्र |
अपरान्ह | अपराह्न |
अहिल्या | अहल्या |
अक्षोहिणी | अक्षौहिणी |
अक्षुण्य | अक्षुण्ण |
अनुवादित | अनूदित |
अन्तर्कथा | अंतःकथा |
अनुशरण | अनुसरण |
आधिक्यता | आधिक्य |
असाढ़ | आषाढ़ |
अँकुर | अंकुर |
आंसू | आँसू |
आईये | आइए |
आरोग्यता | आरोग्य |
आकर्षित | आकृष्ट |
अपन्हुति | अपह्नुति |
आकर्षित | आकृष्ट |
आल्हाद | आह्लाद |
अँगना | अंगना |
अधगति | अधोगति |
अधतल | अधस्तल |
इक्षा | ईक्षा |
इतिपूर्वं | इतःपूर्व |
अनाधिकार | अनधिकार |
अनापेक्षित | अनपेक्षित |
अहोरात्रि | अहोरात्र |
अतिश्योक्ति | अतिशयोक्ति |
इप्सित | ईप्सित |
इकठ्ठा | इकट्ठा |
बिमारी | बीमारी |
दिवाली | दीवाली |
निहारिका | नीहारिका |
महाबलि | महाबली |
निसंदेह | निःसंदेह/निस्संदेह |
यानि | यानी |
निःसंक | निश्शंक |
उपरोक्त | उपर्युक्त |
निस्कलंक | निष्कलंक |
ऊषा | ऊषा |
नुपुर | नूपुर |
उज्वल | उज्ज्वल |
उलंघन | उल्लंघन |
उष्मा | ऊष्मा |
उर्मि | ऊर्मि |
एतरेय | ऐतरेय |
एच्छिक | ऐच्छिक |
औदार्यता | औदार्य/उदारता |
सुई | सूई |
न्यौछावर | न्योछावर |
ऋषिकेश | हृषीकेश |
त्यौहार | त्योहार |
श्रृंगार | शृंगार |
झौंपड़ी | झोंपड़ी |
संग्रहीत | संगृहीत |
कनीनका | कनीनिका |
श्रृंखला | शृंखला |
कंटीला | कँटीला |
कनिष्ट | कनिष्ठ |
करूणा | करुणा |
कलस | कलश |
किंचित | किंचित् |
कारवाही | कार्यवाही/कार्रवाही |
कवियत्री | कवयित्री |
कुमुदनी | कुमुदिनी |
कुतुहल | कौतूहल/कुतूहल |
कैलाश | कैलास |
कोमलांगिनी | कोमलांगी |
खंबा | खंभा |
ग्रसित | ग्रस्त |
गौरवता | गौरव/गुरुता |
गूंज | गूँज |
गांधी | गाँधी |
घनिष्ट | घनिष्ठ |
चाहिये | चाहिए |
चाक्षुस | चाक्षुष |
चिन्ह | चिह्न |
चिंगारी | चिनगारी |
चातुर्यता | चतुरता/चातुर्य |
च्युत् | च्युत |
छठवाँ | छठा |
ज्योत्सना | ज्योत्स्ना |
जरूरत | ज़रूरत |
चाक्षुस | चाक्षुष |
जुखाम | जुकाम |
चिन्ह | चिह्न |
जागृत | जाग्रत/जागरित |
झांसी | झाँसी |
ढ़ोलक | चतुरता/ढोलक |
डमरु | डमरू |
बूढा | बूढ़ा |
मेढ़क | मेढक |
तत्त्वाधान | तत्त्वावधान |
तादात्मय | तादात्म्य |
तदानुकूल | तदनुकूल |
तदोपरांत | तदुपरांत |
त्रिमासिक | त्रैमासिक |
तस्तरी | तश्तरी |
दयालू | दयालु |
दंपति | दंपती |
दाँया | दायाँ |
दीयासलाई | दियासलाई |
दोगुना | दुगुना |
दृढ़वती | दृढ़व्रत |
दैन्यता | दैन्य |
द्वारिका | द्वारका |
द्रष्टव्य | दृष्टव्य |
दांत | दाँत |
धैर्यता | धैर्य/धीरता |
धाताव्य | ध्यातव्य |
धनाड्य | धनाढ्य |
नाँव | नाव |
नर्क | नरक |
नयी | नई |
निरावलंब | निरवलंब |
निरूत्साहित | निरुत्साह |
निर्लोभी | निर्लोभ |
फिटकरी | फिटकिरी |
निरानुनासिक | निरनुनासिक |
निरोग | नीरोग |
निरालंकृत | निरलंकृत |
निहारिका | नीहारिका |
निसंकोच | निस्संकोच/निःसंकोच |
निस्कलंक | निष्कलंक |
निसंदेह | निस्संदेह/निःसंदेह |
निःसंक | निश्शंक |
नुपुर | नूपुर |
परिप्रेक्ष | परिप्रेक्ष्य |
भूगौलिक | भौगोलिक |
पश्चाताप | पश्चात्ताप |
पद्मावत् | पद्मावत |
परिवेक्षण | पर्यवेक्षण |
परिषद | परिषद् |
परलौकिक | पारलौकिक |
पिशाचिनी | पिशाची |
पुरुस्कार | पुरस्कार |
पुनरोक्ति | पुनरुक्ति |
पृथक | पृथक् |
परिशिष्ठ | परिशिष्ट |
पूज्यनीय | पूजनीय |
पौरुषत्व | पुरुषत्त्व/पौरुष |
प्रणयनी | प्रणयिनी |
प्रदर्शिनी | प्रदर्शनी |
प्रियदर्शनी | प्रियदर्शिनी |
प्रतिद्वंद | प्रतिद्वंद्व |
प्रत्यार्पण | प्रत्यर्पण |
फैंकना | फेंकना |
फिटकरी | फिटकिरी |
इमानदारी | ईमानदारी |
बांझ | बाँझ |
बहु | बहू |
बाल्मीकी | वाल्मीकि |
बाहुल्यता | बाहुल्य/बहुलता |
बन | वन |
बृज/व्रज | ब्रज |
भगीरथी | भागीरथी |
भर्तसना | भर्त्सना |
भाग्यवान | भाग्यवान् |
मंत्रीमंडल | मंत्रिमंडल |
मनोकामना | मनःकामना |
महानता | महत्ता |
महात्म्य | माहात्म्य |
माँस | मांस |
मानवीयकरण | मानवीकरण |
मिष्ठान | मिष्टान्न |
मैथलीशरण | मैथिलीशरण |
मूर्छा | मूर्च्छा |
मुहुर्त | मुहूर्त |
मोक्षदायनी | मोक्षदायिनी |
याज्ञवल्क | याज्ञवल्क्य |
यौवनावस्था | युवावस्था |
यानि | यानी |
यूँ | यों |
यशगान | यशोगान |
यशलाभ | यशोलाभ |
रचियता | रचयिता |
रांगा | राँगा |
राजाभिषेक | राज्याभिषेक |
राजनैतिक | राजनीतिक |
रोड़ | रोड |
लघुत्तर | लघूत्तर |
लब्धप्रतिष्ठित | लब्धप्रतिष्ठ |
लाजवती | लाजवंती |
लावण्यता | लावण्य |
वाँछनीय | वांछनीय |
विजीगिषा | विजिगीषा |
वासुकी | वासुकि |
धोका | धोखा |
पुनरावलोकन | पुनरवलोकन |
वेदेही | वैदेही |
वधु | वधू |
विसन्न | विषण्ण |
विरहणी | विरहिणी |
विदेशिक | वैदेशिक |
वाहनी | वाहिनी |
वरिष्ट | वरिष्ठ |
विच्छन | विच्छिन्न |
बुभूक्षा | बुभुक्षा |
वेषभूषा | वेशभूषा |
व्यावहरित | व्यवहृत |
व्यंगोक्ति | व्यंग्योक्ति |
शारिरिक | शारीरिक |
शांतमय | शांतिमय |
शूर्पनखा | शूर्पणखा |
शमशान | श्मशान |
शुरु | शुरू |
श्रीमति | श्रीमती |
श्रुतिलिपि | श्रुतलिपि |
श्रोत | स्रोत |
श्राप | शाप |
षड़दर्शन | षडदर्शन |
षटमुख | षण्मुख |
षटमास | षण्मास |
षटानन | षडानन |
षष्टि | षष्ठी |
षोड़शी | षोडशी |
सौन्दर्यता | सुंदरता |
सोजन्यता | सौजन्य |
सृजक | सर्जक |
स्थायीत्व | स्थायित्व |
सोचनीय | शोचनीय |
स्थायी | स्थाई |
सौहार्द्र | सौहार्द |
स्वामीभक्त | स्वामिभक्त |
सुश्रूषा | शुश्रूषा |
सकुशलतापूर्वक | कुशलतापूर्वक/सकुशल |
स्वर्गरोहण | स्वर्गारोहण |
स्वास्तिक | स्वस्तिक |
स्वंयवर | स्वयंवर |
साईकिल | साइकिल |
संदीपनी | संदीपनि |
सादरपूर्वक | सादर/आदरपूर्वक |
संक्षिप्तकरण | संक्षिप्तीकरण |
स्तनपान | स्तन्यपान |
सारथी | सारथि |
सारिणी | सारणी |
सिपाई | सिपाही |
सीड़ी | सीढ़ी |
सुदामिनी | सौदामिनी |
सूंड | सूँड |
सृष्टा | स्रष्टा |
सन्यासी | संन्यासी |
संप्रदायिकता | सांप्रदायिकता |
सामाग्री | सामग्री |
हिरण्यकश्यप | हिरण्यकशिपु |
हीरन | हरिण/हिरण |
हाथिन/हथिनी | हथनी |
हस्ताक्षेप | हस्तक्षेप |
हतोत्साहित | हतोत्साह |
षटऋतु | षड्ऋतु |
तरुछाया | तरुच्छाया |
मनोकामना | मनःकामना |
यशलाभ | यशोलाभ |
रीत्यानुसार | रीत्यनुसार |
विद्युतचालक | विद्युच्चालक |
राजऋषि | राजर्षि |
दुरावस्था | दुरवस्था |
मनोकष्ट | मनःकष्ट |
इतिपूर्वं | इतःपूर्व |
अधतल | अधस्तल |
मनज्ञ | मनोज्ञ |
महाराजा | महाराज |
मंत्रीवर | मंत्रिवर |
उधम | ऊधम |
कुमुदनी | कुमुदिनी |
कनिष्ट | कनिष्ठ |
कुँआ | कुआँ |
गत्यार्थ | गत्यर्थ |
छिद्रान्वेशी | छिद्रान्वेषी |
छिपकिली | छिपकली |
दैदीप्यमान | देदीप्यमान |
दुवन्नी | दुअन्नी |
प्रार्दुर्भाव | प्रादुर्भाव |
पयोपान | पयःपान |
पुनरुत्थान | पुनरूत्थान |
प्राणीमात्र | प्राणिमात्र |
बहु | बहू |
भुक्कड़ | भुक्खड़ |
भाषाई | भाषायी |
भाष्कर | भास्कर |
वासुकी | वासुकि |
शुद्धिकरण | शुद्धीकरण |
सांस्कृत्यायन | सांकृत्यायन |
युधिष्ठर | युधिष्ठिर |
आनुषांगिक | आनुषंगिक |
आशा है शुद्वध वर्तनी शब्दों की यह सूची आपकी बहुत-सी त्रुटियों को सुधारने में सहायक सिद्ध रही होगी, यदि आप शुद्ध वर्तनी की PDF Download करना चाहते हैं तो नीचे दी गई PDF File पर क्लिक कर Download कर सकते हैं, ब्लॉग पर आपने के लिए आपका शुक्रिया, परीक्षाओं की यदि अआप तैयारी कर रहे हैं हमारे सोशल एकाउंट्स से जरूर जुड़ना – Instagram Facebook Page & Facebook Group Telegram