आकाशदीप कहानी की समीक्षा || जयशंकर प्रसाद ||

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आकाशदीप कहानी की समीक्षा

 

आकाशदीप कहानी की समीक्षा || जयशंकर प्रसाद ||

आकाशदीप कहानी की समीक्षा –आकाशदीप’ कहानी छायावादी कवि एवं आधुनिक कहानीकार जयशंकर प्रसाद की सर्वाधित चर्चित कहानी रही है | इसमें कहानीकार ने बड़ी ही सजगता के साथ इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य बिठाया है | प्रेम और कर्त्तव्य के अंतर्द्वन्द्व को लेकर लिखी गई यह कहानी कर्त्तव्य-भावना का समर्थन करती है |

लेखक – जयशंकर प्रसाद
जन्म तिथि – 30 जनवरी 1889
पुण्य तिथि – 15 नवंबर 1937
हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार,
उपन्यासकार तथा निबन्ध-लेखक

जयशंकर प्रसाद स्वच्छंदतावादी कथाकार हैं | इनकी प्रथम कहानी ‘ग्राम’ (1911 ई.) और प्रथम कहानी संग्रह ‘छाया’ (1912 ई.) है |
जयशंकर प्रसाद के कुल पांच कहानी संग्रह हैं – छाया (1912) प्रतिध्वनि (1926) आकाशदीप (1928) आँधी (1931) इंद्रजाल (1936)

आकाशदीप कहानी संग्रह –

यह इनका तीसरा कहानी संग्रह है, जिसमें कुल 19 कहानियां हैं | आकाशदीप, ममता, स्वर्ग के खंडहर में, सुनहला साँप, हिमालय का पथिक, भिखारिन, प्रतिध्वनि, कला, देवदासी, समुद्र-संतरण, वैरागी, बनजारा, चूड़ीवाला, अपराधी, प्रणय-चिह्न, रूप की छाया, ज्योतिष्मती, रमला और बिसाती |

आकाशदीप की अधिकाँश कहानियाँ इतिहास, कल्पना अथवा रोमांस को लेकर ही चलीं हैं | इस संग्रह की सभी कहानियों की केंद्रीय विषयवस्तु है प्रेम | ‘आकाशदीप’ कहानी में प्रेम का अत्यंत सूक्ष्म और द्वंद्वात्मक चित्रण हुआ है | इसमें चित्रित प्रेमभावना अत्यंत उदात्त और व्यापक है |

आकाशदीप कहानी का सारांश संक्षेप में –

महाजलपोत से सम्बद्ध एक नाव पर दस्यु बुद्धगुप्त और चम्पा के बीच प्रेम होना, उनका बंधनमुक्त होना, बुद्धगुप्त को अपने पिता का हत्यारा जानकार चम्पा के ह्रदय में भयानक अन्तर्द्वन्द्व का उठना, पितृ समाधि की खोज में चम्पा का द्वीप में अकेले रह जाना और प्रेमी बुद्धगुप्त का एकाकी भारत लौटना आकाशदीप कहानी की विषयवस्तु है |

कहानी पात्र –

चम्पा, बुद्धगुप्त, मणिभद्र

कहानी कथानक :

आकाशदीप कहानी का कथानक निरंतर गतिशील बना रहता है | पाठक के मन में रह-रह कर जिज्ञासा एवं कौतूहल की भावना पनपती रहती है | बंदी-वार्तालाप के साथ प्रारम्भ हुआ कहानी का कथानक मुक्त होने पर चंपा और जलदस्यु बुद्धगुप्त के प्रेमालाप में बदल जाता है |

पहले तो चम्पा के मन में उसके प्रति घृणा रहती है क्योंकि, वह बुद्धगुप्त को अपने पिता का हत्यारा मानती है |

बुद्धगुप्त चंपा से परिणय करना चाहता है | वह स्तम्भ पर दीप जलाती है | समुद्र-जल में चमकती दीपों की रौशनी में वह खो जाती है तो अचानक बुद्धगुप्त आकर चम्पा से दीपों के प्रति आकर्षण का कारण बन जाता है तो वह बताती है कि, ये दीपक किसी के आगमन की आशा लिए रहते हैं |

जब मेरे पिता भी समुद्र में जाया करते थे तो, नित्य शाम को मेरी माँ भी दीप जला कर टाँगा करती थी | द्वीप निवासियों के सम्मुख चम्पा और बुद्धगुप्त का विवाह हो जाता है |

बुद्धगुप्त चम्पा से भारत लौटने को कहता है तो, वह कह देती है कि, तुम वहां जाकर सुख भोगो, मैं तो इन्हीं द्वीपवासियों की सेवा में अपना लगाना चाहती हूँ |

आकाशदीप कहानी पात्र एवं चरित्र चित्रण :-

कहानी को सफलता-असफलता की कसौटी पर परखते समय उस के पात्र एवं पात्रों के चरित्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है |

प्रसाद जी की कहानी ‘आकाशदीप’ में स्पष्ट रूप से दो ही पात्र सामने आते हैं –
1. जलदस्यु बुद्धगुप्त
2. चंपा सारा

घटनाचक्र इन्हीं दो पात्रों के आसपास घूमता रहता है | इनके अलावा चंपा-बुद्धगुप्त की बातचीत में मणिभद्र का भी नाम आता है |

यद्यपि वह स्वयं उपस्थित नहीं होता, लेकिन दोनों मुख्य पात्रों द्वारा उसके चरित्र का बखान किया जाता है |

चम्पा का चरित्र  प्रेम, साहस एवं त्याग से भरा हुआ है | वह संकल्प की पक्की है | सेवा-भाव और कर्त्तव्य-भाव के सम्मुख बुद्धगुप्त से अपने प्रेम को त्याग देती है |

मणिभद्र का घिनौना चरित्र चम्पा की आँखें खोल देता है और उसके ह्रदय में बुद्धगुप्त के प्रति घृणा भी कम हो जाती है |वह मान लेती है कि, उसके पिता का हत्यारा बुद्धगुप्त नहीं, मणिभद्र ही है |

इस प्रकार कथानक को गतिशील एवं विकसित करने में इन पात्रों एवं उनके आचरण की अहम भूमिका रही है | कहीं भी पात्रों में असहजता नहीं लगती |

कथोपकथन एवं संवाद

कथोपकथन या संवाद कहानी को गतिशील एवं विकसित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं |

जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘आकाशदीप’ का प्रारम्भ ही चम्पा और बुद्धगुप्त के वार्तालाप से हुआ है | संवाद छोटे-छोटे भी हैं और बड़े-बड़े भी परन्तु स्वाभाविकता बाधित नहीं हुई |

देशकाल एवं वातावरण

कहानी की सार्थकता एवं सफलता उसकी कथावस्तु में चित्रित देशकाल एवं वातावरण की प्रस्तुति पर निर्भर करता है |

इस दृष्टि से विचार किया जाए तो आकाशदीप कहानी में ऐसे वातावरण का सृजन किया गया है,

जिससे पाठक को समाज और राष्ट्र के लिए सर्वस्व त्याग की प्रेरणा मिलती है |

बुद्धगुप्त एवं चम्पा के कथनों से पता चलता है कि, मानव के मन में बंधन-मुक्त होने की कितनी तीव्र लालसा होनी चाहिए |

इसे भी पढ़ें :-

‘उसने कहा था’ कहानी समीक्षा – चंद्रधर शर्मा गुलेरी

‘आकाशदीप’ कहानी का उद्देश्य :-

जयशंकर प्रसाद की कहानी आकाशदीप ही नहीं , कोई भी कला या रचना निरुद्देश्य नहीं होती |

इस कहानी में उद्देश्य को स्पष्ट रूप से उजागर किया गया है | इस कहानी का उद्देश्य है –

  • मानव के भीतर विशवास की भावना जगाना
  • बिना सोचे-समझे किसी से घृणा न करना
  • गरीब असहाय की सेवा करने जैसी भावनाओं को जगाना

चम्पा के आचरण द्वारा बुद्धगुप्त के ह्रदय में दस्यु-वृत्ति का त्याग करवाकर लेखक ने अपने उद्देश्य को दर्शाते हुए कहानी के अंत में कर्त्तव्य के सम्मुख प्रेम की बलि चढ़वा दी है |

भाषा-शैली

‘आकाशदीप’ कहानी की भाषा पर कवि प्रसाद के कवि-हृदय का पर्याप्त प्रभाव रहा है | खड़ीबोली का सहज, सरल एवं प्रांजल इसमें साकार हो उठा है |
तत्सम शब्दों की प्रचुरता कहानी को शिष्ट भाषा का आयाम करती चली गई है |

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि, कहानी-कला की तत्वों की दृष्टि से जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘आकाशदीप’ एक सफल कहानी है |

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