अनुक्रमणिका
हिंदी के प्रथम कवि
के संबंध में विद्वानों के विविध मत
हिन्दी के प्रथम कवि कौन हैं ?
इस संबंध में कोई निश्चित या सर्वमान्य मत प्राप्त नहीं है। हिन्दी के प्रथम कवि के बारे में ‘शिव सिंह सेंगर’ और ‘मिश्रबंधुओं’ ने पुष्य को हिन्दी का प्रथम कवि माना है। किंतु इस कवि का उल्लेख मात्र मिलता है कोई रचना उपलब्ध नहीं है।
डॉ. गणपति चंद्रगुप्त ने भरतेश्वर बाहुबली के रचयिता शालिभद्र सूरि को हिन्दी का प्रथम कवि माना है | मिश्रबंधुओं , शिवसिंह सेंगर और डॉ. गणपति चंद्र गुप्त का मत तर्कसम्मत नहीं है | इस बारे में अलग-अलग मत हमें देखने को मिलते हैं |
विस्तार से जानते हैं –
विविध मत :-
आप जानते हैं हिन्दी में ऐसे कई तथ्य हैं जिन पर विवाद हमेशा से बना रहा है, लेकिन ये भी है कि विवाद का विषय वही बनता है, जिसके बारे में प्रामाणिक जानकारी हमारे इतिहासकारों के पास नहीं उपलब्ध रही | इस कारण से सबके अपने-अपने अलग मत देखने को मिलते हैं |
हिन्दी के प्रथम कवि के बारे में भी इसीलिए सभी विद्वानों ने अपने अलग-अलग मत प्रकट किए हैं।
इस संबंध में जो अलग-अलग मत हमें देखने को मिलते हैं उनके बारे में आपको जानकारी होनी चाहिए, और परीक्षाओं में भी पूछे जाने की इनकी संभावना अधिक है |
परीक्षा सम्बन्धी प्रश्न :-
परीक्षाओं में इससे सम्बंधित दो तरह के प्रश्न बनते हैं | पहला तो सीधा-सा प्रश्न कि, हिन्दी के पहले कवि कौन हैं? जिसका उत्तर सरहपा है, क्योंकि अधिकांश विद्वानों द्वारा यह मान्य है |
दूसरा प्रश्न बनता है कि, किस इतिहासकार ने कौन-से कवि को हिन्दी का पहला कवि माना है।
यहाँ पर मैं आपको इस संबंध में सूची के माध्यम से अवगत करा रहा हूँ कि, किस इतिहासकार द्वारा कौन-से कवि को हिन्दी का पहला कवि स्वीकारा गया है|
आप इस जानकारी को हमेशा याद रखिएगा क्योंकि परीक्षाओं में प्रश्न यहाँ से बनने की पूरी-पूरी संभावना रहती है।
हिन्दी के प्रथम कवि के संबंध में सर्वाधिक उपयुक्त मत –
हिन्दी के प्रथम कवि के संबंध में सबसे अधिक तर्कसंगत और तथ्यों पर खरा उतरता हुआ नाम पंडित राहुल सांकृत्यायन द्वारा माना गया।
राहुल सांकृत्यायन ने सरहपा को हिन्दी का पहला कवि स्वीकार किया, और उनके इस मत को सभी दृष्टियों में अधिकांश विद्वानों द्वारा हिन्दी के प्रथम कवि के रूप में स्वीकारा भी गया। लेकिन शुक्ल जी ने इस बारे में स्पष्ट रूप से अपने विचार व्यक्त नहीं किए वे बड़ी चतुराई से इस प्रश्न को टाल गए हैं |
शुक्ल जी का विचार :-
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी जो हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक निबंधकार व इतिहास ग्रन्थकर्ता के रूप में विख्यात हैं, इस सम्बन्ध में यदि हम इनके विचार न जानें तो यह लेख सफल नहीं जान पड़ेगा, क्योंकि इनके विचार हिंदी साहित्य में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं |
शुक्ल जी लिखते हैं कि –
[blockquote align=”none” author=”शुक्ल जी”]अपभ्रंश हिन्दी का ही एक रूप है, जिसे उनके शब्दों में ‘प्राकृताभास हिन्दी’ या ‘पुरानी हिन्दी’ कहा जा सकता है। इसे ही ‘उत्तर अपभ्रंश’ भी कहा जा सकता है।[/blockquote]
शुक्ल जी ने सिद्धों और नाथों के साहित्य को सांप्रदायिक साहित्य माना है इसलिए सिद्ध कवि ‘सरहपा’ को हिन्दी का पुराना कवि मानते हुए भी उसे महत्त्व नहीं दिया, हिन्दी का पहला कवि किसे माना जाए इसीलिए इस प्रश्न को शुक्ल जी बड़ी चतुराई से टाल जाते हैं। लेकिन हाँ यदि हम अपभ्रंश और हिन्दी को एक मानते हैं तो सरहपा को हिन्दी का पहला कवि माना जा सकता है।
इसका आधार यह है कि, सरहपा जिनको सरहपाद, राहुलभद्र, सरोजवज्र इत्यादि नामों से भी जाना जाता है, इन्होंने जिस दोहा और पदों की शैली को अपनी रचनाओं में प्रयुक्त किया, बाद के कवियों ने उसे परंपरा के रूप में अपनाया है | अतः ‘सरहपाद’ को हिंदी का प्रथम कवि मानना तर्कसंगत है |
हिंदी के प्रथम कवि को स्वीकारने के सम्बन्ध में विविध मत
इतिहासकार | हिंदी के प्रथम कवि |
---|---|
डॉ. राम कुमार वर्मा | स्वयंभू |
राहुल सांकृत्यायन | सरहपा |
डॉ. नगेंद्र | सरहपा |
शिवसिंह सेंगर | पुष्य या पुण्ड |
मिश्र बंधु | पुष्य या पुण्ड |
चंद्रधर शर्मा गुलेरी | राजा मुंज |
हजारी प्रसाद द्विवेदी | अब्दुर्रहमान |
माता प्रसाद गुप्त | गोरखनाथ |
जयदेव सिंह | गोरखनाथ |
वसुदेव सिंह | जोइंदु |
गणपति चंद्र गुप्त | शालिभद्र सूरि |
डॉ. बच्चन सिंह | विद्यापति |
उम्मीद है आपको इस लेख से हिन्दी के प्रथम कवि के बारे में वह सभी जानकारी मिल गई होगी जो आप जानना चाहते थे, ब्लॉग में आने के लिए आपका शुक्रिया।
2 comments
बहुत अच्छा
बहुत ही उपयोगी व सारगर्भित जानकारी! आपका हार्दिक आभार !💐🙏🏻