हिंदी के प्रख्यात आलोचकों से सम्बंधित वस्तुनिष्ठ हिंदी प्रश्न – हिंदी आलोचना

1674 views
हिंदी के प्रख्यात आलोचक

हिंदी के प्रख्यात आलोचकों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण तथ्य


हिंदी के प्रख्यात आलोचकों से सम्बंधित इस लेख में हिंदी आलोचना विधा से जुड़े महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को आपके समक्ष रखा जा रहा है । आशा है आगामी परीक्षाओं में इस आलोचना विधा से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य आपको यहाँ पर दिए गए संकलन से देखने मिलेंगे । इसीलिए इन तथ्यों को संज्ञान में अवश्य रख लें, इस लेख के अंत में हिंदी आलोचना/प्रख्यात आलोचक से सम्बंधित वस्तुनिष्ठ प्रश्नों की PDF भी दी गई है, जिसे आप Download भी कर सकते हैं ।

हिंदी के प्रख्यात आलोचक

हिंदी आलोचकों की कोटि


हिंदी आलोचना : महत्त्वपूर्ण हिंदी वस्तुनिष्ठ प्रश्न :-

  • भारतेंदु जी को आधुनिक हिंदी का पहला आलोचक माना जाता है | इसकी शुरुआत इनके नाटक निबंध (1883) से मानी जाती है, जो एक सैद्धांतिक आलोचना थी ।
  • हिंदी की व्यावहारिक समीक्षा की शुरुआत बालकृष्ण भट्ट जी द्वारा हुई। इनके द्वारा ‘हिंदी प्रदीप’ पत्रिका में ‘सच्ची समालोचना’ नाम से एक स्तंभ 1886 ई० में लिखा गया, जिसमें इन्होंने लाला श्री निवास दास जी के नाटक ‘संयोगिता स्वयंवर’ की समीक्षा की थी ।
  • हिंदी समालोचना के सूत्रपात का श्रेय आचार्य शुक्ल जी ने ‘बालकृष्ण भट्ट’ और ‘बद्री नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ को दिया है।
  • महावीर प्रसाद द्विवेदी जी को हिंदी का प्रथम लोकवादी आचार्य माना जाता है।
  • ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ के प्रकाशन से ‘शोध एवं अनुसंधान पदक समीक्षा’ का विकास माना जाता है।
  • तुलनात्मक आलोचना/समीक्षा की शुरुआत पद्म सिंह शर्मा जी से मानी जाती है, इन्होंने सरस्वती पत्रिका (1907 ई०) में ‘बिहारी और सादी’ की तुलनात्मक समीक्षा की थी ।
  • आचार्य शुक्ल जी को हिंदी में वैज्ञानिक आलोचना का अनुसंधानकर्त्ता माना जाता है, इन्हें हिंदी का पथिकृत आचार्य भी माना जाता है | ‘काव्य में रहस्यवाद’ (1929) निबन्ध को इनकी प्रथम ‘सैद्धांतिक आलोचना’ माना जाता है।
  • बाबू श्यामसुंदर दास ने हिंदी में अध्यापकीय आलोचना की शुरुआत की। इन्हीं के निर्देशन में हिंदी का प्रथम शोधहिंदी काव्य में निर्गुण सम्प्रदाय’ शीर्षक से पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने लिखा ।
  • श्याम सुन्दर दास जी का ‘साहित्यालोचन’ ग्रन्थ अकादमिक समीक्षा अर्थात् एम. ए. के विद्यार्थियों को जानकारी देने के लिए लिखा गया था, इसमें नवीन समीक्षा सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।
  • श्याम सुन्दर दास जी के ‘साहित्यालोचन’के आधार पर ‘रमाशंकर शुक्ल रसाल जी ने ‘आलोचनादर्श’ लिखा।
  • लक्ष्मी नारायण सुधांशु की प्रथम आलोचना रचना ‘काव्य में अभिव्यंजनावाद’ है, इसमें इन्होंने क्रोचे के सिद्धांत की भारतीय सिद्धांतों से तुलना की है तथा शुक्ल जी की कई बातों में असहमति जताई है।
  • सूर्य कान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी कविता के सम्बन्ध में लिखते हैं – कविता परिवेश की पुकार है | इन्होंने ‘विद्यापति’ और ‘चंडीदास’ पर समीक्षा लिखी | कवित्त को इन्होंने ‘हिंदी का जातीय छंद’ कहा।
  • सुमित्रा नंदन पन्त जी पहले ऐसे छायावादी कवि हैं, जिन्होंने छायावादी कविता के पक्ष में आलोचना लिखी।
  • समन्वयवादी समीक्षा पद्धति को विकसित करने का श्रेय आचार्य नंददुलारे वाजपेयी जी को है, इनकी पहली रचना ‘हिंदी साहित्य:बीसवीं शताब्दी’ है, इसमें इनके 1930 से 1940 के मध्य लिखे गए निबंध संकलित हैं।
  • आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ऐतिहासिक-सांस्कृतिक चेतना से युक्त मानवतावादी आलोचक के रूप में जाने जाते हैं | ‘सूर साहित्य’ इनकी पहली कृति है जिसमें जयदेव, विद्यापति तथा चंडीदास की राधा का सूर की राधा के साथ तुलनात्मक अध्ययन करके उनके बीच के सूक्ष्म अंतर को दिखलाया गया है।
  • 1940 ई० में ‘कालिदास की लालित्य योजना’ नामक पुस्तक का प्रकाशन हुआ | इस पुस्तक में द्विवेदी जी ने कालिदास के माध्यम से भारतीय सौन्दर्य दृष्टि की व्याख्या की है ।
  • आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने कविता के सन्दर्भ में कहा है कि, ‘’भावावेग कल्पना और पदलालित्य को ‘कविता’ कहा जा सकता है।
  • डॉ० नगेन्द्र जी मूलतः रसवादी और व्यक्तिवादी आलोचक हैं, इन्होंने अपनी व्यावहारिक समीक्षा का आरम्भ छायावाद पर कुछ निबंधों के माध्यम से किया ।
  • इसी समय इन्होंने अपनी पहली पुस्तक ‘सुमित्रा नंदन पन्त’ लिखी | पन्त जी पर लिखी इस पुस्तक को शुक्ल जी ने ‘ठीक ठिकाने की पुस्तक’ कहकर प्रशंसित किया।
  • समीक्षा के इतिहास में डॉ० नगेन्द्र का महत्त्व जितना व्यावहारिक समीक्षा के कारण है, उससे कहीं अधिक सैद्धांतिक समीक्षा के कारण है |
  • सैद्धांतिक चिंतन की पराकाष्ठा 1964 ई० में रचित उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण पुस्तक ‘रस सिद्धांत’ में हुई, जिसमें उन्होंने अनुभूति तत्त्व को विशेष महत्त्व देते हुए साधारणीकरण की एक मौलिक तथा महत्त्वपूर्ण व्याख्या की।
  • प्रगतिवादी समीक्षा 1936 ई० में ‘प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के बाद अस्तित्व में आई। इसका सैद्धांतिक पक्ष मार्क्सवाद पर आधारित है लेकिन साहित्य जगत् में इसे ‘समाजवादी यथार्थवाद’ कहा जाता है।
  • प्रगतिवादी समीक्षकों में मुख्य हैं – शिवदान सिंह चौहान, प्रकाश चन्द्र गुप्त, रामविलास शर्मा, गजानन माधव मुक्तिबोध और नामवर सिंह।
  • हिंदी में प्रगतिवादी (मार्क्सवादी) आलोचनात्मक समीक्षा के प्रणेता शिवदान सिंह चौहान हैं, इनका ‘प्रगतिशील साहित्य की आवश्यकता’ नामक निबंध ‘विशाल भारत’ (1937) में प्रकाशित हुआ था।
  • शिवदान सिंह चौहान अंग्रेजी के समीक्षक कॉडवेल के मूल्यों से प्रभावित है, 1951 ई० में इन्होंने ‘आलोचना’ पत्रिका (त्रैमासिक) का सम्पादन किया था।
  • ‘आलोचना तथा काव्य’ और ‘आधुनिक कविता का मूल्यांकन’ डॉ. इन्द्रनाथ मदान की आलोचनात्मक कृतियाँ हैं ।
  • डॉ० रामविलास शर्मा जी मूलतः मार्क्सवादी समीक्षक हैं | प्रेमचंद (1941 ई०) इनकी पहली आलोचनात्मक कृति है। इस पुस्तक में डॉ० रामविलास शर्मा जी ने मार्क्सवादी समीक्षा के सिद्धांत के आधार पर प्रेमचंद जी का विश्लेषण किया है ।
  • ‘प्रेमचंद और उनका युग’ (1952 ई०) डॉ० रामविलास शर्मा जी की दूसरी आलोचनात्मक कृति है, डॉ० शर्मा जी की आलोचना का चरम बिंदु ‘निराला की साहित्य साधना’ (1969 ई०) है।
  • डॉ० नामवर सिंह जी ने अपना आलोचक जीवन ‘हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योगदान’ से शुरू किया था ।
  • छायावाद, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ, दूसरी परम्परा की खोज इनकी प्रमुख आलोचनात्मक कृतियाँ हैं ।
  • मनोविश्लेषण नामक नयी समीक्षा शाखा की स्थापना फ्रायड, एडलर और युंग ने की थी। फ्रायड ने ‘कामवृत्ति’ को एडलर ने ‘हीनता की पूर्ति की प्रवृत्ति’ को तथा युंग ने ‘जिजीविषा या अमरत्व की आकांक्षा’ को जीवन की प्रेरक शक्ति के रूप में माना ।
  • हिंदी में ‘इलाचंद्र जोशी से मनोविश्लेषणवादी समीक्षा की शुरुआत मानी जाती है | अज्ञेय, डॉ० देवराज उपाध्याय, डॉ० नगेन्द्र को मनोविश्लेषणवादी समीक्षा पद्धति का प्रतिनिधि माना जाता है।
  • यी समीक्षा अंग्रेजी शब्द ‘New Criticism’ का अनुवाद है, इस शब्द का प्रयोग पहली बार 1910 ई० में स्पिनबर्न ने किया | आगे चलकर 1941 ई० में जॉन क्रो रैन्सम ने इसी ‘New Criticism’ नाम से अपनी समीक्षात्मक पुस्तक लिखी ।
  • नयी समीक्षा आन्दोलन के विकास में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समीक्षक अज्ञेय हैं, जिनकी कई पुस्तकों जैसे ‘त्रिशंकु’, ‘भवंती’, ‘अंतरा’, और ‘आधुनिक साहित्य’ में यह पद्धति दिखाई देती है ।
  • इसी समय इलाहबाद में ‘परिमल’ नामक संस्था सक्रिय हुई जिसके कई सदस्य जैस – लक्ष्मीकांत वर्मा, विजयदेव नारायण साही, धर्मवीर भारती, रघुवंश, रामस्वरूप चतुर्वेदी इस समीक्षा के विकास में सक्रिय हुए ।
  • ‘आधुनिक साहित्य का परिप्रेक्ष्य’ डॉ० रघवंश की ऐसी आलोचनात्मक कृति है, जिसमें उन्होंने भारतेंदु से लेकर नयी कविता तक के आंदोलनों पर अपनी समीक्षात्मक दृष्टि का परिचय दिया है ।
  • अज्ञेय आरम्भ में मनोविश्लेषण से काफी प्रभावित रहे किन्तु 1960 ई० में रचित उनकी पुस्तक ‘आत्मनेपद’ नयी समीक्षा की दृष्टि से अंत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है ।
  • लक्ष्मीकांत वर्मा जी की पुस्तकनयी कविता के प्रतिमान’ नयी समीक्षा की पहली पुस्तक मानी जाती है | धर्मवीर भारती की पुस्तक ‘,मानव मूल्य और साहित्य’ इस क्रम में महत्त्वपूर्ण पुस्तक है ।

इन्हें भी देखें –


नयी समीक्षा के समीक्षकों की प्रमुख रचनाएँ


रचनाकार

रचनाएँ

लक्ष्मीकांत वर्मा

नयी कविता के प्रतिमान

धर्मवीर भारती

मानव मूल्य और साहित्य

विजयदेव नारायण साही

लघु मानव के बहाने हिंदी कविता पर बहस, शमशेर की काव्यानुभूति की बनावट

रामस्वरूप चतुर्वेदी

अज्ञेय और आधुनिक रचना की समस्या, काव्य भाषा पर तीन निबंध

डॉ० रघुवंश

आधुनिकता और सर्जनशीलता

निर्मल वर्मा

कला का जोखिम

रमेश चन्द्र शाह

अज्ञेय और असाध्य वीणा, अज्ञेय:वागर्थ का वैभव


हिंदी आलोचना विधा के प्रख्यात आलोचकों से सम्बंधित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य जो यहाँ आपके समक्ष रखे गए हैं, इस सम्बन्ध में और भी जानकारियाँ हम इसी लेख में जोड़ते रहेंगे, आज जो तथ्य आपके समक्ष रखे गए हैं इनमें से बहुत से प्रश्न विगत परीक्षाओं (PGT & NET.JRF Hindi) में पूछे जा चुके हैं, आप जिस परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं उनमें यदि हिंदी आलोचना /आलोचक Topic आपके सिलेबस का हिस्सा है तो आप इन तथ्यों को अवश्य याद रखें ।

यदि आप इस आलोचना विधा से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को पढ़ना चाहते हैं तो यहाँ जाएँ – हिंदी आलोचना विधा के महत्त्वपूर्ण प्रश्न

हिन्दी ज्ञान सागर


हिन्दी आलोचना वस्तुनिष्ठ प्रश्न PDF


Related Posts

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Don`t copy text!
UA-172910931-1