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हिन्दी साहित्य का इतिहास || काल विभाजन एवं नामकरण ||
हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन एवं नामकरण – हिंदी साहित्य के काल विभाजन का लक्ष्य अंततः इतिहास की विभिन्न परिस्थितियों के सन्दर्भ में उसकी घटनाओं एवं प्रवृत्तियों के विकास क्रम को स्पष्ट करना होता है | साहित्येतिहास पर भी यह बात लागू होती है |
हिंदी साहित्येतिहास का क्षेत्र अभी तक परम्परागत काल विभाजन की अनेक असंगतियों एवं त्रुटियों के परिणामस्वरूप विभिन्न भ्रांतियों एवं गुत्थियों से ग्रसित है, जिनके कारण इतिहास के वैज्ञानिक अध्ययन का मार्ग अवरुद्ध हो रहा है | यहां परंपरागत काल-विभाजन के विभिन्न प्रयासों का उल्लेख किया जा रहा है –
हिन्दी साहित्य का इतिहास
(काल विभाजन एवं नामकरण)
हिन्दी साहित्य के प्रारम्भिक इतिहासकारों में ‘गार्सां द तासी’ एवं ‘शिव सिंह सेंगर’ ने ‘हिन्दी साहित्य काल विभाजन’ का कोई प्रयास नहीं किया | काल विभाजन के सम्बन्ध में सबसे पहला प्रयास ‘जॉर्ज ग्रियर्सन’ का है |
जॉर्ज ग्रियर्सन ‘काल विभाजन’ में पूर्णतः सफल तो नहीं हो सके फिर भी, उन्होंने यथासंभव कालक्रमानुसार सामाग्री को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है |
जॉर्ज ग्रियर्सन का काल विभाजन –
हिंदी साहित्य का काल विभाजन करने का सर्वप्रथम प्रयास ‘जॉर्ज ग्रियर्सन’ ने किया, इन्होंने अपनी पुस्तक ‘द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिट्रेचर ऑफ हिन्दुस्तान’ में ग्यारह (11) अध्यायों में हिन्दी साहित्य का काल विभाजन किया है |
जॉर्ज ग्रियर्सन के काल विभाजन की विशेषताएँ एवं कमियाँ –
‘ग्रियर्सन’ ने साहित्येतिहास में काल विभाजन का सर्वप्रथम आरंभिक प्रयास किया, ग्रियर्सन की सबसे बड़ी उपलब्धि भक्तिकाल को (16 वीं – 17 वीं शती के युग को ) स्वर्णयुग माना है किन्तु, उनके द्वारा किया गया यह काल विभाजन वैज्ञानिक नहीं है, क्योंकि चारण काल (700-1300 ई.) के तुरंत बाद वे 15 वीं शताब्दी में पहुँच जाते हैं और 14 वीं शताब्दी का उल्लेख नहीं करते हैं |
कालों के नामकरण भी सर्वत्र किसी एक आधार पर नहीं हैं | उनका यह प्रयास प्रारम्भिक प्रयास है जिसमें न्यूनताएं तो हैं किन्तु, यह काल विभाजन उनकी प्रतिभा शक्ति और गहन अध्ययनशीलता को प्रमाणित करता है |
हिन्दी साहित्य का इतिहास
(काल विभाजन एवं नामकरण)
मिश्रबंधुओं का काल विभाजन
हिन्दी साहित्य का संभवतः सर्वाधिक बड़ा विभाजन और नामकरण करने का श्रेय मिश्रबंधुओं के काल विभाजन को दिया जाता है |
मिश्रबंधुओं ने अपनी पुस्तक ”मिश्रबन्धु विनोद” (1913 ई.) में काल विभाजन का एक नया प्रयास किया, जो ग्रियर्सन के काल विभाजन से ज्यादा विकसित है | मिश्रबंधुओं द्वारा किया गया काल विभाजन इस प्रकार है –
मिश्रबन्धुओं के काल विभाजन की कमियाँ –
इनका यहाँ काल विभाजन सम्यक् एवं स्पष्ट है परन्तु, तथ्यों की दृष्टि से इसमें अनेक असंगतियाँ विद्यमान हैं | ये असंगतियां इस प्रकार हैं –
- कालखंडों के नामकरण में विभिन्न पद्धतियां अपनायीं गईं हैं |
- ग्रियर्सन महोदय की भाँति 700 ई. से 1300 ई. तक के युग को हिंदीसहित्य के साथ सम्बद्ध कर दिया, जो कि अपभ्रंश का युग है |
- परिवर्तन काल अनावश्यक है
- अलंकार काल आंतरिक प्रवृत्ति पर आधारित है |
- काल विभाजन का कोई स्पष्ट आधार भी नहीं दिखता |
हिन्दी साहित्य का इतिहास
(काल विभाजन एवं नामकरण)
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का काल विभाजन
आचार्य राम चंद्र शुक्ल जी पहले इतिहास कार हैं, जिन्होंने अपने हिंदी साहित्य के इतिहास ग्रन्थ (1927 ई. में लिखित 1929 ई. में प्रकाशित) में साहित्य की मुख्य प्रवृत्ति एवं कालक्रम दोनों के आधार पर पहली बार हिंदी साहित्य का सुनिश्चित एवं वैज्ञानिक वर्गीकरण किया |
शुक्ल जी ने काल विभाजन में प्रत्येक काल के साहित्य की मुख्य प्रवृत्तियों के साथ-साथ कवियों की संख्या के स्थान पर उनके साहित्यिक मूल्यांकन पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण सामने रखा | उन्होंने कालविभाजन का सरलीकृत रूप (हिंदी साहित्य के इतिहास का 4 भागों में विभाजन) भी प्रस्तुत किया |
आचार्य राम चंद्र शुक्ल जी ने हिंदी-साहित्य का आरम्भ 1050 विक्रमी संवत् से मानते हुए हिंदी-साहित्य के इतिहास को अपभ्रंश साहित्य के समीपस्थ खड़ा किया| इन्होंने हिंदी-साहित्येतिहास को 4 (चार) भागों में बांटा और उनका नामकरण – वीरगाथाकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल एवं गद्यकाल रूप में किया |
शुक्ल जी के कालविभाजन एवं नामकरण की स्वीकृति
शुक्ल परवर्ती मुख्य इतिहासकारों में हजारी प्रसाद द्विवेदी, श्याम सुन्दर दास, रामकुमार वर्मा, गणपति चंद्र गुप्त, नगेन्द्र जी, बच्चन सिंह, रामस्वरूप चतुर्वेदी, इत्यादि उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने कुछ संशोधनों के साथ शुक्ल जी के कालविभाजन एवं नामकरण को ही स्वीकार किया |
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का दृष्टिकोण
कुछ विभिन्न दृष्टिकोण को अपनाते हुए डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने शुक्ल जी के काल विभाजन को ही स्वीकार किया | उन्होंने संवत् के स्थान पर ईसवी का प्रयोग किया | द्विवेदी जी ने शुक्ल जी के ‘वीरगाथा काल’ नाम का खंडन कर हिंदी साहित्य के आरंभिक काल के लिए ‘आदिकाल’ नामकरण किया | उन्होंने अन्य कालों का नामकरण शुक्ल जी द्वारा प्रस्तुत नामकरण को ही स्वीकार किया |
हिन्दी साहित्य का इतिहास
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र का हिंदी सहित्य काल विभाजन
हिन्दी साहित्य का इतिहास
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी साहित्य काल विभाजन
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने सामान्यतः शुक्ल जी के ढाँचे को स्वीकार किया किन्तु, काल विभाजन में थोड़ा परिवर्तन किया | उन्होंने आदिकाल की सीमा को कुछ आगे तक बढ़ाया व इससे भक्तिकाल और रीतिकाल की सीमा स्वतः ही आगे बढ़ गई |
इसके अलावा द्विवेदी जी ने सम्पूर्ण हिंदी साहित्य को चार कालों में बाँटा तथा ये कालखंड भी शुक्ल जी के विभाजन के अनुसार ही हैं | नामकरण इन्होंने अलग तरीके से किया है | वे ‘वीरगाथा काल’ के स्थान पर प्रस्तुत नाम ‘आदिकाल’ स्वीकारते हैं जो कि, आज भी हिंदी जगत में स्वीकार्य है | हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का काल विभाजन इस प्रकार है –
रामकुमार वर्मा का काल विभाजन
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काल विभाजन की त्रुटियों को संशोधित कर नया रूप देने में डॉ. रामकुमार वर्मा का नाम उल्लेखनीय है | रामकुमार वर्मा का काल विभाजन इस प्रकार है –
रामकुमार वर्मा के काल विभाजन की विशेषता
रामकुमार वर्मा द्वारा किया गया काल विभाजन केवल वीरगाथा काल को छोड़कर शुक्ल जी के काल विभाजन से साम्यता रखता है | एक विशेषता संधिकाल की है, जो वस्तुतः गुण वृद्ध का द्योतक काम, परन्तु दोष वृद्धि का द्योतक अधिक है |
हिन्दी साहित्य का आरम्भ 7 वीं व 8 वीं शताब्दी से मानना भ्रामक है, क्योंकि वह काल अपभ्रंश का काल रहा है | अतः वर्मा जी का काल विभाजन शुक्ल जी के काल विभाजन परिष्कृत रूप नहीं है, परन्तु फिर भी उनका प्रयास सराहनीय है|
हिन्दी साहित्य का इतिहास
(काल विभाजन एवं नामकरण)
गणपति चंद्र गुप्त का काल विभाजन
गुप्त जी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास’ में निम्नलिखित रूप में काल विभाजन किया है |
डॉ. गणपति चंद्र गुप्त का संक्षिप्त काल विभाजन
आदिकाल | (1184 -1350 ई.) |
पूर्व मध्यकाल | (1350-1600 ई.) |
उत्तर मध्यकाल | (1600-1857 ई.) |
आधुनिक काल | (1857 ई. से अब तक) |
रामखेलावन द्वारा किया गया काल विभाजन
हिन्दी साहित्य का इतिहास
डॉ. नगेन्द्र द्वारा किया गया काल विभाजन
बच्चन सिंह काल विभाजन एवं नामकरण
रामस्वरूप चतुर्वेदी काल विभाजन एवं नामकरण
हिन्दी साहित्य का इतिहास
‘आदर्श काल विभाजन’
हिन्दी साहित्य के कालविभाजन एवं नामकरण को लेकर विभिन्न विद्वानों के विविध मत रहे हैं | इसका मुख्य कारण अलग-अलग साहित्यिक प्रवृत्तियों का आधारीकरण है, किसी भी कालविभाजन एवं नामकरण को हम पूर्णतः उपयुक्त नहीं मान सकते हैं, लेकिन इनमें से सर्वाधिक मान्यताप्राप्त काल विभाजन किसी विद्वान् का स्वीकारा गया तो वे हैं आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी द्वारा किया गया हिन्दी साहित्य का काल विभाजन, लेकिन इनके द्वारा किया गया ‘वीरगाथाकाल’ नामकरण अत्यंत विवादित है, जिसका नाम द्विवेदी जी आदिकाल रखते है|
इसी तरह आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी द्वारा रखा गया हिंदी साहित्य के नामकरण को सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है, इन्होंने बाकि कालखंडों के नाम तो शुक्ल जी कृत नामकरण को ही आधार बना कर रखा लेकिन ‘वीरगाथा काल’ का नाम द्विवेदी जी ‘आदिकाल’ रखते हैं |
कहीं न कहीं आंशिक त्रुटियाँ हमें सभी में देखने को मिलती ही हैं, इसीलिए यहाँ पर हम आपके समक्ष एक ‘आदर्श काल विभाजन’ प्रस्तुत कर रहे हैं जिसे सर्वसम्मति से स्वीकारा गया है, लेकिन ये भी सच है कि इस काल विभाजन का आधार भी पूर्वोल्लेखित काल विभाजन एवं नामकरण ही हैं |
पूर्वोक्त वर्गीकरणों के आधार पर सारांशतः हिन्दी साहित्य के सम्पूर्ण इतिहास को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है –
आदिकाल | 1000 ई. से 1350 ई. तक |
भक्तिकाल | 1350 ई. से 1650 ई. तक |
रीतिकाल | 1650 ई. से 1850 ई. तक |
आधुनिक काल | 1850 ई. से अब तक |
पुनर्जागरण काल (भारतेन्दु युग) | 1850 ई. से 1900 ई. तक |
जागरण सुधार काल (द्विवेदी काल) | 1900 ई. से 1920 ई. तक |
छायावाद काल | 1920 ई. से 1936 ई. तक |
प्रगतिवाद काल | 1936 ई. से 1943 ई. तक |
प्रयोगवाद काल | 1943 ई. से 1953 ई. तक |
नवलेखन काल | 1953 ई. से अब तक |
हिन्दी साहित्य विभिन्न कालों के नामकरण
आदिकाल का नामकरण
• वीरगाथा काल | आचार्य राम चंद्र शुक्ल |
• सिद्ध सामंत काल | पंडित राहुल सांकृत्यायन |
• संधि एवं चारण काल | डॉ. रामकुमार वर्मा |
• बीजवपन काल | आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी |
• प्रारम्भिक काल | मिश्रबन्धु |
• अपभ्रंश काल | चंद्रधर शर्मा गुलेरी/ धीरेन्द्र वर्मा |
• संक्रमण काल | हरिश्चंद्र वर्मा/ रामखेलावन पाण्डेय |
• अंधकाल/बाल्यावस्था काल | रमाशंकर शुक्ल 'रसाल' |
• वीरकाल | विश्वनाथ प्रसाद मिश्र |
• चारणकाल | ग्रियर्सन |
• आदिकाल | डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी |
• प्रारंभिक काल/शून्यकाल | गणपति चंद्र गुप्त |
• अन्धकार काल | पृथ्वीनाथ कमल कुलश्रेष्ठ |
• पुरानी हिन्दी का काल | चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' |
• उद्भव काल | वासुदेव सिंह |
• अत्यधिक विरोधी एवं व्याघातों का युग | हजारी प्रसाद द्विवेदी |
• अनिर्दिष्ट लोक प्रवृत्ति का युग | राम चंद्र शुक्ल |
• वीरकाल (अपभ्रंश का) | श्यामसुंदर दास |
• अपभ्रंश काल : जातीय साहित्य का उदय | बच्चन सिंह |
• संक्रांति काल | रामप्रसाद मिश्र |
• वीर प्रशस्ति युग | विजयेंद्र स्नातक |
• प्राचीन काल | शम्भुनाथ सिंह |
• आविर्भाव काल | डॉ. शैलेश जैदी |
भक्तिकाल का नामकरण
भक्तिकालीन साहित्य में भक्ति-भावना की प्रधानता के कारण इस काल का नाम ‘भक्तिकाल’ रखा गया | इस काल में कबीरदास, मीराबाई, तुलसीदास, सूरदास जैसे मूर्धन्य भक्ति कवि हुए, जिनकी भक्ति भावना के आधार पर इस काल को भक्तिकाल कहा गया |
सर्वप्रथम सर्वाधिक साहित्य भक्तिकाल में ही रचा गया जिसे, ‘हिन्दी साहित्य का स्वर्णिम काल’ भी कहा जाता है |
भक्तिकाल के नामकरण के सम्बन्ध में विद्वानों में विवाद नहीं है, भक्तिकाल नाम को सहर्ष सभी ने स्वीकारा है |
यह बात ध्यातव्य है कि, आचार्य राम चंद्र शुक्ल जी ने भक्तिकालीन साहित्य को निर्गुण व सगुण भक्ति शाखा में वर्गीकृत किया व इनके भी दो-दो भेद किए जो कि इस प्रकार हैं –
‣ निर्गुण भक्ति शाखा –
१. ज्ञानाश्रयी शाखा २. प्रेमाश्रयी शाखा
‣ सगुण भक्ति शाखा –
१. रामाश्रयी शाखा २. कृष्णाश्रयी शाखा
इनमें से निर्गुण भक्ति शाखा को तीन विद्वानों द्वारा अलग-अलग नाम दिया गया जो कि, इस प्रकार है –
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने ”निर्गुण भक्ति साहित्य” नाम दिया है |
डॉ. राम कुमार वर्मा जी ने ”संतकाव्य परंपरा नाम दिया है |
सूफी काव्यधारा का नामकरण ‘
विजयदेव नारायण शाही – सूफी काव्यधारा
रामकुमार वर्मा – प्रेम काव्य
गणपति चंद्र गुप्त – प्रेमाख्यानक काव्य धारा
समकालीन समीक्षक – रोमांचक आख्यान काव्य
‣ लेकिन साहित्यिक प्रचलन में ‘सूफी काव्य’ अधिक लोकप्रिय है |
हिन्दी साहित्य का इतिहास
रीतिकाल का नामकरण
रीतिकाल के नाम पर भी हिन्दी साहित्येतिहासकार एकमत नहीं रहे इसलिए रीतिकाल के नामकरण पर भी विवाद देखने को मिलता है |
इस सम्बन्ध में नाम जो विभिन्न विद्वानों द्वारा माने गए हैं वे इस प्रकार हैं –
रीतिकाल | राम चंद्र शुक्ल जी |
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रीतिकाव्य | जॉर्ज ग्रियर्सन |
शृंगार काल | विश्वनाथ प्रसाद मिश्र |
अलंकृत काल/ उत्तरालंकृत काल | मिश्रबन्धु |
रीति शृंगार युग | भगीरथ मिश्र |
कलाकाल | रमाशंकर शुक्ल 'रसाल' |
शास्त्रीय काल | रामप्रसाद मिश्र |
अपकर्ष काल | डॉ. गणपति चंद्र गुप्त |
चारणी काल | एफ० ई० के० |
अन्धकार काल | त्रिलोचन |
लालित्य युग | सूर्यकांत शास्त्री |
अलंकृत काल | चतुरसेन शास्त्री |
ह्रास काल | शम्भुनाथ सिंह |
काव्य विलास युग | सत्यकाम वर्मा |
संवर्धन काल | डॉ. रामखेलावन पाण्डेय |
रीतिशाखा काल | राम अवध द्विवेदी |
साहित्य शास्त्रीय विकास काल | कमल कुलश्रेष्ठ |
हिन्दी साहित्य का इतिहास
आधुनिक काल का नामकरण
हिन्दी साहित्य में ‘आधुनिक काल’ नाम सर्वप्रथम ‘आचार्य रामचंद्र शुक्ल’ जी द्वारा दिया गया था | इन्होंने ही फिर आधुनिक काल को ‘गद्यकाल’ नाम से अभिहित भी किया था | मिश्रबंधुओं ने आधुनिक काल को वर्तमान काल और डॉ. रामकुमार वर्मा और गणपति चंद्र गुप्त ने आधुनिक काल कहा |
बहरहाल इस आधुनिक काल के नामकरण के रूप में हमें इतने विविध मत देखने को नहीं मिलते जितने आदिकाल व रीतिकाल के नामकरण में देखने को मिलते हैं क्योंकि ‘आधुनिक काल’ नाम लगभग सभी विद्वानों द्वारा स्वीकारा गया है |
आधुनिक काल के सन्दर्भ में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि इस काल के अंतर्गत आने वाले युगों को लेकर विद्वानों ने कुछ अलग अलग नाम अभिहित किए हैं, इन्हें आपको जान लेना चाहिए |
भारतेन्दु युग (पुनर्जागरण काल)
भारतेन्दु युग को डॉ. नगेंद्र जी ने ‘पुनर्जागरण काल’ नाम से अभिहित किया है |
आचार्य राम चंद्र शुक्ल जी ने भारतेन्दु युग ‘नई धारा : प्रथम उत्थान’ के अंतर्गत रखा है |
रामविलास शर्मा ने भारतेन्दु युग को ‘नवजागरण काल’ की संज्ञा दी है |
द्विवेदी युग (जागरण सुधार काल)
आचार्य राम चंद्र शुक्ल जी ने द्विवेदी युग को ‘नई धारा : द्वितीय उत्थान’ के अंतर्गत रखा |
छायावाद युग
छायावाद के नामकरण के सन्दर्भ में बड़ी ऊहापोह की स्थिति है |
राम चंद्र शुक्ल जी ने इसका सम्बन्ध अंग्रेजी के ‘फैंटसमेटा’ से जोड़ा, वे इसका सम्बन्ध रहस्य वाद से मानते हैं | आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने इसका सम्बन्ध युगबोध से जोड़ते हुए इसे आध्यात्मिक छाया का भान कहा | मुकुटधर पाण्डेय ने इसे कविता न मानकर उसकी छाया माना |
सुशील कुमार ने छायावाद को कोरे कागज़ की भाँति अस्पष्ट, निर्मल ब्रह्म की विशद छाया, वाणी की नीरवता इत्यादि कहा |
बच्चन सिंह जी ने छायावाद को तत्कालीन काव्य की सम्पूर्ण विशेषताओं की व्यंजना में असमर्थ मानकर छायावाद के स्थान पर ‘स्वच्छंदतावाद’ शब्द का प्रयोग किया |
इससे आगे के सभी काल जैसे – प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता इत्यादि नाम निर्विवाद हैं | इसलिए नामकरण के सम्बन्ध में परीक्षाओं के दृष्टि से इतनी जानकारी आप सभी के लिए पर्याप्त हैं, यदि आप इतनी जानकारी रखते हैं जितनी हमने आपसे साझा की हैं तो, आपको परीक्षा में कोई परेशानी नहीं होगी |
उम्मीद है आपको बहुत कुछ हमारे इस लेख से सीखने को मिला होगा, हिन्दी ज्ञान सागर के इस ब्लॉग में आने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया |