काव्य लक्षण || Kaavy Lakshan in hindi ||
काव्य लक्षण क्या है ?
- संस्कृत आचार्यों द्वारा प्रदत्त काव्य लक्षण
- हिंदी विद्वानों द्वारा प्रदत्त काव्य लक्षण
- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा प्रदत्त काव्य लक्षण
काव्य लक्षण
kavya lakshan in sanskrit
संस्कृत आचार्यों द्वारा प्रदत्त काव्य लक्षण :-
विस्तारपूर्वक संस्कृत काव्य लक्षण
(Kaavy Lakshan in Sanskrit)
अग्निपुराण काव्य लक्षण –
”संक्षेपाद्वाक्यमिष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली |काव्यं स्फुदलङ्कारं गुणवद् दोष वर्जितम् ||”
भरतमुनि काव्य लक्षण –
”मृदुललित पदाठ्यं गूढ़ शब्दार्थहीनंजनपद सुखबोध्यं युक्तिमन्नृत्य योज्यम्बहुकृत संमार्ग संधि संधान युक्तं,सम्भवति शुभकाव्यं नाटकं प्रेक्षकाणाम् ||”
भामह का काव्य लक्षण –
”शब्दार्थों सहितौ काव्यम्” |अर्थात् शब्द और अर्थ का सहभाव ही काव्य है |
रुद्रट –
‘ननु शब्दार्थो काव्यम्’अर्थात् शब्द और अर्थ के मेल को काव्य कहते हैं |
कुंतक –
शब्दार्थो सहितौ’वक्र कवि व्यापारशालिनी | बन्धे व्यवस्थितौ काव्यम् |’अर्थात् सुव्यवस्थित बंध में बंधा वक्र व्यापारशाली शब्दार्थ काव्य है |
दण्डी –
‘शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली’अर्थात् इष्ट अर्थ से युक्त पदावली काव्य है ।
आनंदवर्धन – ”
शब्दार्थं शरीरं तावत् काव्यम् |” ”ध्वनिरात्मा काव्यस्य |”कहकर दर्शाया कि, शब्दार्थ रूप शरीर काव्य है और ध्वनि उसकी आत्मा है |
आचार्य वामन –
आचार्य वामन ‘ने काव्यालंकार सूत्रवृत्ति’ में –
काव्यं ग्राह्यमालंकारात् सौन्दर्यलंकारः’ ‘स च दोषगुणालङ्कार हानादानाभ्याम्’ और ‘काव्य शब्दोयम्’ गुणालङ्कार संस्कृतयोरवर्त्तते’ कहा है
आचार्य मम्मट –
तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलङ्कृति पुनः क्वापि |”अर्थात् दोषरहित, गुणसहित और कहीं- कहीं अलंकार रहित काव्य है ।
जयदेव –
”अंगीकरोति यः काव्यं शब्दार्थावनलंकृति |असौ न मन्यते कस्मादनुष्ण मनलंकृति ||”
”निर्दोषा लक्षणवती सरीतिर्गुण भूषिता |सालंकार रसानेक वृत्ति वाक्काव्य नामवाक् ||”
भोज –
”निर्दोषं गुणवत् काव्यमलंकारैलंकृतम् |रसान्वितं कविं कुर्वन् कीर्तति प्रीतिंच विन्दुति ||”अर्थात् दोष मुक्त, गुण युक्त, अलंकारों से अलंकृत सरस काव्य कीर्ति व यश प्रदान करता है |
हेमचंद –
”अदोषौ सगुणौ सालंकारौ च शब्दार्थौ काव्यं” अर्थात् दोष रहित, गुण व अलंकार सहित शब्दार्थ काव्य है |
विश्वनाथ –
”वाक्यम् रसात्मकं काव्यम् |”अर्थात् रसात्मक वाक्य ही काव्य है |
जगन्नाथ –
”रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम् |”अर्थात् रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाले शब्द काव्य है |
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Kaavy Lakshan in HIndi
काव्य लक्षण हिंदी
केशवदास –
जदपि सुजाति सुलच्छिनी, सुबरन सरस सुवृत्तभूषन बिनु न राजई, कविता, वनिता मित्त ||’
श्री पति –
‘यदपि दोष बिनु गुण सहित, अलंकार सों लीन |कविता बनिता छबि नहीं, रास बिन तदपि प्रवीन |”वे कहते हैं –”शब्द अर्थ बिन दोष गुन अलंकार रसपान |ताको काव्य बखानिये श्रीपति परम सुजान ||”
चिंतामणि –
”सगुणालंकारन सहित, दोष रहित जो होइ |शब्द अर्थ ताको कवित्त, करात विबुध सब कोइ |”
कुलपति मिश्र –
‘जग ते अद्भुत सुख सदन, शब्दरु अर्थ कवित्त |यह लच्छन मैंने कियो समुझि ग्रन्थ बहु चित्त |”अर्थात् अलौकिक आनंद प्रदान करने वाला शब्दार्थ काव्य है |उनका मानना है कि –”दोषरहित अरु गुणसहित, कछुक अल्प अलंकार |सबद अरथ सो कबित है, ताको करो विचार |”
देव –
”शब्द सुमति मुख ते कढ़ै, लै पद वचननि अर्थ |छंद, भाव, भूषण, सरस, सो कहि काव्य समर्थ ||”अर्थात् छंद, भाव, अलंकार और सरसता युक्त वे शब्द जो अर्थ अभिव्यक्ति में सक्षम हों, काव्य कहलाते हैं |
सोमनाथ –
” सगुन पदारथ दोष बिनु, पिंगल मत अविरुद्ध |भूषण सुत कवि कर्म को, सो कवित्त कहि सुद्ध ||”
भिखारीदास –
‘जाने पदारथ दोष बिनु, पिंगल मत अविरुद्ध |सो धुनि अर्थह्न वाक्यह्न ले गुन, शब्द अलंकृत सों रति पाकी ||”
ठाकुर –
”पंडित और प्रवीनन को जोई, चित्त हरै सो कवित्त कहावै |”
महावीर प्रसाद द्विवेदी –
”ज्ञानराशि के संचित कोश का नाम ही साहित्य है |”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल –
”जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, उसी प्रकार ह्रदय की मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है |हृदय की इसी मुकि की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्दविधान करती है, उसे कविता कहते हैं |”
जयशंकर प्रसाद –
”काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है, जिसका सम्बन्ध विश्लेषण, विकल्प या विज्ञान से नहीं है | वह एक श्रेयमयी प्रेय रचनात्मक ज्ञानधारा है |”
मुंशी प्रेमचंद –
‘साहित्य जीवन की आलोचना है | चाहे वह निबंध के रूप में हो, चाहे कहानी या काव्य के, उसमें हमारे जीवन की व्याख्या और आलोचना होनी चाहिए |”
महादेवी वर्मा –
”कविता कवि-विशेष की भावनाओं का चित्रण है और वह चित्रण इतना ठीक है कि उसमें वैसी ही भावनाएँ किसी दूसरे के हृदय में आविर्भूत होती हैं |”
सुमित्रा नंदन पंत –
”कविता हमारे परिपूर्ण क्षणों की वाणी है |”
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी –
“जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उसकी आत्मा को तेजोदीप्त न कर सके, जो उसके हृदय को पर दुःखकातर और संवेदनशील न बना सके, उसे साहित्य कहने में संकोच होता है।”
डॉ. नगेंद्र –
आत्माभिव्यक्ति ही वह मूल है जिसके कारण कोई व्यक्ति साहित्यकार और उसकी कृति साहित्य बन पाती है।”“रमणीय अनुभूति, उक्ति वैचित्र्य और छंद – इन तीनों का समंजित रूप ही कविता है।
डॉ. गणपति चंद्र गुप्त –
“साहित्य भाषा के माध्यम से रचित वह सौंदर्य या आकर्षण से युक्त रचना है जिसके अर्थबोध से सामान्य व्यक्ति को भी आनंद की प्राप्ति होती है।”
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पाश्चात्य विद्वानों द्वारा प्रदत्त
काव्य लक्षण
अरस्तू काव्य लक्षण –
ड्राइडन –
वर्ड्सवर्थ –
जॉनसन –
कॉलरिज –
शैली –
मैथ्यू अर्नाल्ड –
जॉन स्टुअर्ट –
हेजलिट –
हडसन –
मिल्टन –
डेनिस –
काव्य लक्षण – निष्कर्ष
- निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि जीवन की सार्थक शाब्दिक अभिव्यक्ति का नाम ही काव्य है। यह मानव मन के गहरे कोने तक झाँककर उसकी अनकही को जनकही बनाता है।
- साहित्य उसके सुख-दुःख पीड़ा-दर्द में मानव का सच्चा साथी बन अपनी सार्थकता सिद्ध करता है।
- यह एक प्रकार से मानव के मनोभावों की शाब्दिक एवं कलात्मक अभिव्यक्ति है। इसके माध्यम से मनुष्य अपने सुख-दुःख, हर्ष-विषाद और जीवन की विविध स्थितियों को वाणी प्रदान करता आया है।
- यह अपने समय का साक्षी और भविष्य के लिए सच्चा दस्तावेज होता है। आदमी को आदमीयत देना ही साहित्य का सच्चा कार्य है।यह अपने दायित्व का निर्वाह भलीभाँति करता है।
- समाज के सुख और वैभव पूर्ण काल में यह मानव मन में राग-रंग से युक्त भावों की अनुगूँज बनता है तो त्रासद पूर्ण जीवन की स्तिथियों में यह उनकी करुण चीत्कार बनकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है।
2 comments
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