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काव्य हेतु /Kavya Hetu in Hindi/Sanskrit
PDF – काव्यशास्त्र
काव्य हेतु का अर्थ – काव्य हेतु से अर्थ/आशय – उस शक्ति या साधन से है जो, काव्य रचना में कवि की सहायता करते हैं ।
‘हेतु’ से आशय ‘कारण’ से है अर्थात् वह शक्ति या साधन जो कविता की रचना का कारण बनता है, ‘काव्य हेतु’ कहलाता है।
काव्य हेतु के भेद –
- प्रतिभा
- व्युत्पत्ति
- अभ्यास
प्रतिभा –
व्युत्पत्ति –
अभ्यास –
समाधि – अतिरिक्त काव्य हेतु
काव्य हेतु विषयक विविध संस्कृत आचार्यों के अभिमत
आचार्य भरतमुनि –
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आचार्य दण्डी –
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आचार्य रुद्रट –
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कुंतक –
आचार्य वामन –
अभिनवगुप्त –
राजशेखर –
आनंदवर्धन –
भट्टतौत –
कुंतक –
आचार्य कुंतक का मत है कि, ‘प्राक्तानाद्यतन संस्कारपरिपाकप्रौढ़ा प्रतिभा काचिदेव’ कविशक्तिः |‘ इस प्रकार इन्होंने ‘कवि शक्ति’ को ही प्रतिभा माना |
मम्मट –
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वाग्भट्ट –
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जगन्नाथ –
हेमचन्द्र –
समाधि –
- आचार्य राजशेखर ने समाधि को ‘आभ्यंतर प्रयत्न’ कहा |
- इनके अनुसार मन की एकाग्रता समाधि है |
- वामन ने समाधि को ‘अवधान’ नाम से अभिहित किया |
काव्यहेतु के सम्बन्ध में चार प्रकार के विभिन्न दृष्टिकोण –
- प्रतिभा अनिवार्य – भामह, वामन, आनंदवर्धन, मम्मट | इन्होंने प्रतिभा को अनिवार्य काव्य हेतु माना |
- ‘व्युत्पत्ति‘ और ‘अभ्यास‘ काव्य के हेतु हैं तथा प्रतिभा काव्य का अनिवार्य हेतु है – आनंदवर्धन |
- प्रतिभा काव्य का हेतु है और व्युत्पत्ति और अभ्यास प्रतिभा के हेतु हैं – हेमचन्द्र, वाग्भट्ट द्वितीय |
- प्रतिभा के अभाव में भी काव्य सृजन हो सकता है – एकमात्र समर्थक दण्डी |
काव्यहेतु की सँख्या – (एक दृष्टि में)
रीतिकालीन आचार्यों की दृष्टि में काव्य हेतु
- सूरति मिश्र – (3) शक्ति, व्युत्पत्ति अभ्यास
- श्री पति – (1) इन्होंने शक्ति को ‘सपुण्य विशेष’ कहा तथा प्रतिभा से इसको अलग किया है |
- जगन्नाथ प्रसाद भानु – (3) शक्ति, निपुणता, अभ्यास |
- बिहारी लाल भट्ट – (3) पूर्व संस्कारित (प्रतिभा) सद्ग्रन्थों का अध्ययन, अभ्यास |