Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय

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Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद

Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद

जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ

Premchand biography in hindi

Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद – जब भी हिंदी साहित्यकारों में लेखकों का नाम आता है तो उनमें मुंशी प्रेमचंद जी का नाम सर्वोपरि लिया जाता है। दुनिया इन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ के नाम से भी जानती है। प्रेमचंद जी को हिंदी और उर्दू साहित्य का सबसे प्रसिद्ध लेखक माना जाता है। आसमान में जो स्थान ध्रुव तारे का है, वही स्थान हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद जी का है।


जन्म –

इनके जन्म के विषय में अगर बात की जाए तो इनका जन्म 31 जुलाई 1880 उत्तर प्रदेश राज्य के बनारस जिले में स्थित लमही गांव में हुआ था। दुनिया जिन्हें मुंशी प्रेमचंद के नाम से जानती है ये उनका असली नाम नहीं था उनका असली नाम धनपत राय था।
मगर लिखना शुरू करते समय इन्होंने अपना नाम ‘नवाब राय’ रखा लेकिन बाद में नाम बदलकर प्रेमचंद रखना पड़ा इसके पीछे कारण क्या था ये मैं आपको आगे बताऊंगा।


Munshi prenchand मुंशी प्रेमचंद:

जीवन और संघर्ष


मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन हमेशा अभावहीन स्थिति में व आर्थिक तंगी में ही गुज़रा है। जब यह 7 वर्ष के थे तभी इन्होंने उर्दू और हिंदी की शिक्षा ग्रहण कर ली थी और जब ये 8 वर्ष के हुए तो इनकी माता चल बसीं, कुछ समय बाद इनकी दादी का भी देहांत हो गया।

इनकी एक बड़ी बहन भी थी जिनकी शादी हो चुकी थी तथा इनके पिता ने घर की देखभाल के लिए दूसरी शादी भी कर ली थी मगर इन्हें सौतेली मां से उतना प्रेम नहीं मिला जिस वजह से वह अकेला अनुभव महसूस करने लगे |

अकेलेपन में रहने की वजह से इन्हें घर बैठे किताबें पढ़ने की आदत हो गई और इन्होंने उर्दू, फारसी,अंग्रेजी साहित्य की कई किताबें पढ़ डालीं। जब ये हाई स्कूल में थे तो इनकी तबीयत बहुत बिगड़ गई थी जिस वजह से यह सेकंड डिविजन में पास हुए।


मुंशी प्रेमचंद: जीवन और संघर्ष


मुंशी प्रेमचंद जी के मन में अपनी पढ़ाई पूरी करने की प्रबल इच्छा थी, मगर गरीबी व विषम परिस्थितियों के कारण उनकी पढ़ाई रुक गई।
आर्थिक स्थिति से बाहर निकलने के लिए इन्होंने एक वकील के घर में उसके बेटे को ट्यूशन पढ़ाने की नौकरी कर ली जिसके लिए उन्हें महीने के 5 रूपए मिलते थे।

उस समय में छोटी उम्र में शादी हो जाया करती थी तो इनके पिताजी ने इनका विवाह एक अमीर घराने की महिला से किया, उनकी पत्नी उनसे बहुत झगड़ा करती थीं तथा सही तालमेल न होने के कारण वह प्रेमचंद जी को छोड़कर अपने पिता के घर चले गई और प्रेमचंद जी उसे कभी मिलने भी नहीं गए।


Munshi Premchand

मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय


विवाह के 1 साल बाद ही इनके पिताजी का देहांत हो गया और अचानक इनके सिर पर पूरे घर का बोझ आ गया। इन्होंने शादी के फैसले पर अपने पिताजी के बारे में लिखा है कि “पिताजी ने जीवन के अंतिम वर्षों में ठोकर खाई वह स्वयं तो गिरे ही और साथ में मुझे भी डुबो दिया, मेरी शादी बिना सोचे समझे करा दी।” हालांकि इनके पिताजी को बाद में इसका एहसास हुआ और इस बात पर काफी अफसोस भी किया।

प्रेमचंद जी अपनी आर्थिक स्थिति से हमेशा ही जूझते रहे, इनकी आर्थिक विपत्तियों का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि पैसों के अभाव में उन्हें अपना कोर्ट और पुस्तकें बेचनी पड़ी। एक दिन तो ऐसी हालत हो गई कि वह अपनी सारी पुस्तकों को लेकर एक बुक सेलर के पास पहुंच गए, वहां इनकी मुलाकात मिशनरी स्कूल के हेड मास्टर से हुई। उन्होंने प्रेमचंद जी से अपने स्कूल में नौकरी करने का प्रस्ताव रखा जिसे इन्होंने स्वीकार कर लिया।

Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद

इसी दौरान उन्होंने इंटरमीडिएट की शिक्षा भी पूरी की। इसके कुछ समय बाद इन्होंने सरकारी स्कूल में असिस्टेंट टीचर के रूप में नौकरी ज्वाइन कर ली। जब इनके जीवन में थोड़ी आर्थिक तंगी कम हुई तो इन्होंने एक विधवा स्त्री से विवाह कर लिया जिनका नाम शिवरानी देवी था और इनसे इनके दो पुत्र और एक पुत्री हुई।

प्रेमचंद जी ने लिखना तो वैसे 13 वर्ष की उम्र में ही शुरू कर दिया था लेकिन दूसरी शादी के बाद उनके जीवन में कुछ बदलाव आया, इनके लेखन में सजगता आई। नौकरी के दौरान प्रेमचंद जी ने अपना पहला लघु उपन्यास असरारमाबेद लिखा जिसे हिंदी में देवस्थान रहस्य कहते हैं।


Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय


1905 में यह भारत की राजनीतिक स्थिति से बड़े प्रभावित हुए जिसका असर इनकी रचनाओं में भी दिखने लगा। उन्होंने अपनी पहली कहानी दुनिया का सबसे अनमोल रतन लिखी जिसके अनुसार दुनिया का सबसे अनमोल रत्न है ‘हमारे खून की आखिरी बूंद’ जिसे हमें देश की आजादी के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।
इसके बाद इनकी लघु कहानी संग्रह की एक किताब सोजे वतन प्रकाशित हुई जिसके द्वारा यह देश के लोगों को आजादी के प्रति जागरूक करने की कोशिश कर रहे थे मगर यह किताब अंग्रेजों की नजर में आ गई और पुलिस ने उनके घर में छापा मार दिया जिसमें उन्होंने सोजे वतन की 500 प्रतिलिपियां जला डालीं।

इसके बाद अंग्रेजों ने इनके लिखने पर पाबंदी लगा दी और ये चेतावनी दी कि आगे से वे इस तरह की रचनाएं न लिखें। मगर प्रेमचंद जी लिखना कहां बंद कर सकते थे इसी वजह से उन्हें अपना नाम बदलकर नवाब राय से प्रेमचंद रखना पड़ा।

इसके बाद इनका पहला उपन्यास सेवासदन लोगों को बहुत पसंद आया और धीरे-धीरे प्रेमचंद जी प्रसिद्ध लेखक के रूप में माने जाने लगे। इस उपन्यास से इन्हें 700 मिले। शिक्षा पूरी करने की इच्छा इनमें पहले से ही थी इसलिए इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. की शिक्षा पूरी की।


Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय


सन् 1921 में उस समय महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन से यह काफी प्रभावित हुए। असहयोग आंदोलन जिसे हम NON CO-OPERATION MOVEMENT के नाम से भी जानते हैं, इसमें गांधी जी ने सभी लोगों से सरकारी नौकरी छोड़ने का निवेदन किया।

हालांकि इनकी आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी फिर भी इन्होंने कुछ वक्त सोच-विचार कर के सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और फिर स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य जारी रखते रहे।

\प्रेमचंद जी ने हमेशा सामाजिक परेशानियों और वास्तविक घटनाओं पर ही रचनाएं लिखी। 8 अक्टूबर सन् 1936 को एक लंबी बीमारी के चलते हिंदी साहित्य का अनमोल रत्न इस दुनिया को अलविदा कह गया। हिंदी साहित्य में अपने अमूल्य योगदान के लिए दुनिया इन्हें हमेशा याद करती रहेगी।
दोस्तों! जब भी आप को मौका मिले तो आप इनकी कृतियों को जरूर पढ़िएगा। आपको आभास हो जाएगा कि क्यों इन्हें उपन्यास सम्राट कहा जाता है।


Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक परिचय :-


दोस्तों अगर अब मैं इनकी कृतियों के बारे में बात करूं तो इन्होंने कुल 18 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां, 4 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख संपादकीय, भाषण, भूमिका और पत्र आदि की रचना की। मगर मैं आप सबके सामने उन्हीं कृतियों को प्रस्तुत कर रहा हूं जो बहुत महत्वपूर्ण है।आगे मैं विस्तार से आपको इनकी रचनाओं की जानकारी दूंगा |

मुंशी प्रेमचंद जी के प्रमुख उपन्यास गोदान, गबन, प्रेमाश्रय, सेवा सदन, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, कर्मभूमि, प्रतिज्ञा, वरदान और मंगलसूत्र आदि हैं। इनमें से गोदान प्रेमचंद जी का सबसे अंतिम और महत्वपूर्ण उपन्यास है जो 1936 में प्रकाशित हुआ मुंशी प्रेमचंद जी के गोदान उपन्यास को हिंदी साहित्य में “ग्राम्य जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य” भी कहा जाता है |

मंगलसूत्र इनकी अपूर्ण रचना है। मगर कुछ लोगों द्वारा कहा जाता है कि इस उपन्यास को इनके पुत्र अमृतराय द्वारा पूरा लिखा गया है।


मुंशी प्रेमचंद जी के महत्वपूर्ण नाटक हैं –

कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी।

इनके द्वारा लिखी गई महत्वपूर्ण कहानियां हैं

नमक का दरोगा, दो बैलों की कथा, दुनिया का सबसे अनमोल रत्न, ईदगाह, पूस की रात, माता का हृदय, पंच परमेश्वर, नरक का मार्ग, वफा का खंजर, पुत्र प्रेम, कफन, बड़े घर की बेटी, राष्ट्र का सेवक घमंड का पुतला, कर्मों का फल आदि।


मानसरोवर कथा संग्रह –

इसके अलावा मानसरोवर कथा संग्रह इनकी महत्वपूर्ण रचना है जो आठ भागों में विभाजित है और हर भाग में छोटी-छोटी कहानियां हैं ।
दोस्तों! इनकी रचनाओं पर फिल्में भी बनीं चुकी हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं – मजदूर, गबन, शतरंज का खिलाड़ी, सद्गति और कफ़न आदि।


प्रेमचंद की रचनाओं का प्रभाव

अगर प्रेमचंद जी की कृतियों का हम अध्ययन करें तो अनेक प्रकार की बुराइयां गरीबी तथा अन्य सामाजिक समस्याओं का सजीव प्रदर्शन देखने को मिलता है। प्रेमचंद जी के कृतियों के सम्मान में इनके जन्म दिवस 31 जुलाई सन 1980 को भारतीय डाक विभाग में डाक टिकट जारी किया गया था।

प्रेमचंद जी की प्रसिद्धि का अंदाजा लगाया जा सकता है कि, उनके द्वारा लिखी गई रचनाओं को उर्दू, चीनी और रूसी भाषा में भी प्रकाशित किया गया है जो विदेशों में भी बहुत लोकप्रिय हुई हैं। प्रेमचंद जी अपने जीवन में हिंदी साहित्य के प्रति पूरी तरह समर्पण रहे।

इनका मानना था कि – [blockquote align=”none” author=”मुंशी प्रेमचंद”]यदि समाज को सच का आईना दिखाना है तो लेखन ही सबसे बड़ा सहारा है, जो राजनीति से भी आगे चल कर पूरे जनमानस को एक नया रास्ता दिखाती है |'[/blockquote]


मुंशी प्रेमचंद जी के हिंदी साहित्य में दिए योगदान को देखते हुए इन्हें ‘भारतीय साहित्य का ध्रुवतारा’ माना जाता है | जो कि आज भी भारतीय जनमानस के मन पर प्रकाशवान् है | मुंशी प्रेमचंद जी चाहे आज हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा दिखाए गए रास्ते जो कि, कहानियों और कृतियों के माध्यम से आज भी हम सबके बीच जीवित हैं और हम सभी को जीवन जीने की राह दिखाते हैं |

दोस्तों अब विस्तार से बात करते हैं इनकी साहित्यिक कृतियों की, यदि आप परीक्षा की दृष्टि से पढ़ना चाहते हैं तो आपके लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगी

Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ


Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद के नाटक


प्रेमचंद जी के कुल चार नाटक उनके द्वारा लिखे गए जिनमें शबेतार नाटक, संग्राम, कर्बला, प्रेम की वेदी नाटक शामिल हैं |

शबेतार नाटक

1920 ई. में कानपुर से प्रकाशित उर्दू मासिक पत्र ज़माना में सितम्बर-अक्टूबर अंक में प्रकाशित |

संग्राम (1923 ई.)

प्रेमचंद की प्रतिनिधि इस नाट्यकृति में एक सुन्दर स्त्री की प्राप्ति के लिए दो भाइयों के वासनात्मक संग्राम की गाथा है | संग्राम वस्तुतः जीवन का संग्राम है जो प्रकारांतर से नाटक में सर्वत्र मौजूद है | इस नाटक में सुराज के बिना सभी इच्छाओं के अपूर्ण रहने का भाव व्यक्त हुआ है|

कर्बला (1928 ई.)

प्रेमचंद की नाट्यकला का उत्तम निदर्शन है – यह नाटक | स्त्री पात्रों से रहित इस नाटक में हिन्दू पात्रों का समावेश करके प्रेमचंद ने ‘हिन्दू-मुस्लिम’ एकता का सन्देश मुखरित किया है | मुस्लिम – संस्कृति में कर्बला का विशेष महत्त्व है | प्रेमचंद की युगांतकारी दृष्टि का यह नाटक परिचायक है |

प्रेम की वेदी (1929 ई.)

इस एकांकी नाटक के फलक में विवाह-समस्या के साथ-साथ स्त्री-उत्पीड़न, पर्दा-प्रथा, स्त्री को भोग की वस्तु मानने की मनोवृत्ति का वर्णन हुआ है |


Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास –


सेवासदन (1918) –

भारतीय नारी से पराधीनता, दहेज़-प्रथा, बेमेल विवाह, वैश्य समाज का चित्रण, नारी जीवन की समस्याओं के साथ-साथ समाज के धर्माचार्यों, मठाधीशों, धनपतियों, सुधारकों के आडंबर, दंभ, ढोंग, पाखंड, चरित्रहीनता, पुलिस की घूसखोरी, वेश्यागमन, मनुष्य के दोहरे चरित्र, साम्प्रदायिक द्वेष आदि सामाजिक विकृतियों का विवरण

वरदान (1921) –

अनमेल विवाह का दुष्परिणाम, कैशोर्य प्रेम की विफलता की कहानी

प्रेमाश्रम (1922) –

जमींदारों के शोषण एवं किसानों की त्रासदी का उपन्यास

रंगभूमि (1925) –

पूंजीपतियों, राजाओं, कारखाना, मालिकों के विरुद्ध अंधे भिखारी सूरदास के माध्यम से प्रतिरधात्मक संघर्ष की गाथा

कायाकल्प (1926) –

पुनर्जन्म, पुनर्यौवन की अलौकिक अद्भुत कहानी

निर्मला (1927 )-

दहेज़-प्रथा, अनमेल विवाह के दुष्परिणाम की गाथा

प्रतिज्ञा (1829) –

विधवा जीवन की कारुणिक कथा एवं नारी की आर्थिक पराधीनता की कहानी

गबन (1931) –

मध्यवर्ग की हिपोक्रेसी, स्त्री के आभूषण-प्रेम की कहानी

कर्मभूमि (1932) –

गाँव के जमींदार और शहर में म्यूनिसिपल के खिलाफ संघर्ष की गाथा

गोदान (1936) –

ग्रामीण एवं कृषि संस्कृति का महाकाव्यात्मक उपन्यास, अंतिम पूर्ण उपन्यास

मंगलसूत्र

मात्र 4 परिच्छेद लिखने के उपरान्त प्रेमचंद दिवंगत हो गए, सामाजिक आर्थिक समस्यायों के केंद्र में आक्रोश, असंतोष और संघर्ष का स्वर अभिव्यक्त |


Munshi Prmchand मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ :-


मुंशी प्रेमचंद ने लगभग 300 कहानियाँ लिखीं हैं, जो उनके “मानसरोवर” कहानी संग्रह जो कि आठ भागों में विभाजित है, उसमें संकलित हैं। मुंशी प्रेमचंद जी का उर्दू में रचित प्रथम कहानी संग्रह “सोजे वतन” (1908) है और हिन्दी में लिखा पहला कहानी संग्रह “सप्त सरोज”(1917) है।

मुंशी प्रेमचंद की लिखी लगभग सभी कहानियाँ जो उनके कहानी संग्रह में संकलित हैं क्रम से दिए जा रहे हैं –


Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद के कहानी संग्रह एवं उसमें संकलित कहानियाँ –


सप्त सरोज (1917) – प्रेमचंद का प्रथम हिन्दी कहानी संग्रह

बड़े घर की बेटी, सौत, सज्जनता का दंड, पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा, उपदेश, परीक्षा

नवनिधि (1919)
राजा हरदौल, रानी सारंघा, मर्यादा की वेदी, पाप का अग्नि कुंड, जुगनू की चमक, धोखा, अमावस्या की रात्रि, ममता, पछतावा

प्रेम पूर्णिमा (1919)

ईश्वरी न्याय, शंखनाद, खून सफेद, गरीब की हाय, दो भाई, बेटी का धन, धर्म- संकट, दुर्गा का मंदिर, सेवा-मार्ग, शिकारी राजकुमार, बलिदान, bodh, सच्चाई का उपहार, ज्वालामुखी, महातीर्थ

प्रेम पचीसी (1923)
आत्माराम, पशु से मनुष्य, मूंठ, ब्रह्म का स्वांग, सुहाग की साड़ी, विमाता, विस्मृति, बूढ़ी काकी, हार की जीत, लोकमत का सम्मान, दफ़्तरी, विध्वंस, प्रारब्ध, बैर का अंत, नागपूजा, स्वत्व रक्षा, पूर्व संस्कार, दुस्साहस, बौड़म, गुप्त धन, आदर्श विरोधी, विषम समस्या, अनिष्ट शंका, नैराश्य-लीला, परीक्षा

प्रेम-प्रसून (1924)

शाप, त्यागी का प्रेम, मृत्यु के पीछे, यही मेरी मातृ भूमि है, लॉग- डॉट, चकमा, आप-बीती, आभूषण, राजभक्त, अधिकार चिंता, दुरासा, गृहदाह

प्रेम-प्रमोद (1926)
विश्वास, नरक का मार्ग, स्त्री और पुरुष, उद्धार, निर्वासन, कौशल, स्वर्ग की देवी, आभूषण, आधार, एक आंच की कसर, माता का हृदय, परीक्षा, तैंतर, नैराश्य लीला, दंड, धिक्कार

प्रेम- प्रतिमा (1926)
मुक्ति धन, दीक्षा, क्षमा, मनुष्य का परम धर्म, गुरु मंत्र, सौभाग्य के कोड़े, विचित्र होली, मुक्ति मार्ग, बिक्री के रुपए, शतरंज के खिलाड़ी, वज्रपात, भाड़े का टट्टू, बाबाजी का भोग, विनोद, भूत, सवा सेर गेहूँ, सभ्यता का रहस्य, लैला

प्रेम- द्वादशी (1928)

शांति, बैंक का दीवाला, आत्माराम, दुर्गा का मंदिर, बड़े घर की बेटी, सत्याग्रह, गृहदाह, बिक्री के रुपए, मुक्ति का मार्ग, शतरंज के खिलाड़ी, पंच परमेश्वर, शंखनाद

प्रेम तीर्थ (1928)
मंदिर, निमंत्रण, राम लीला, मंत्र, कामना-तरु, सती, हिंसा परमो धर्मः, बहिष्कार, चोरी, लांछन, कजाकी, आँसुओं की होली

प्रेम चतुर्थी (1928) – बैंक का दीवाला, शांति, लालफीता, लॉग-डॉट

पंच प्रसून – बैंक का दीवाला, शांति, शंखनाद, आत्माराम, बूढ़ी काकी

नव-जीवन

महातीर्थ, सुहाग की साड़ी, दो भाई, ब्रह्म का स्वांग, आभूषण, रानी सारंघा, बूढ़ी काकी, जुगनू की चमक, माँ दुर्गा का मंदिर

पांच फूल (1929)
कप्तान साहब, इस्तीफा, जिहाद, मंत्र, फ़ातहा

सप्त सुमन (1930)
बैर का अंत, मंदिर, ईश्वरीय न्याय, सुजान भगत, ममता, सती, गृहदाह

प्रेम-पंचमी (1930)
मृत्यु के पीछे, आभूषण, राज्य भक्त, अधिकार-चिंता, गृहदाह

प्रेम-पीयूष
प्रेरणा, डिमांस्ट्रेंशन, मंत्र, सती, मंदिर, कजाकी, क्षमा, मुक्ति-मार्ग, बिक्री के रुपए, सवा सेर गेहूँ, सुजान भगत

गुप्त धन, भाग 1 (1962) –

दुनिया का सबसे अनमोल रत्न, शेख मख़मूर, शोक का पुरस्कार, सांसारिक प्रेम और देश प्रेम, विक्रमादित्य का तेगा, आखिरी मंजिल, आल्हा, नसीहतों का दफ्तर, राजहट, त्रिया चरित्र, मिलाप, मनोबन, अंधेर, सिर्फ एक आवाज, नेकी, बांका जमींदार, अनाथ लड़की, कर्मों का फल, अमृत, अपनी करनी, गैरत की कटार, घमंड का पुतला, विजय, वफा का खंजर, मुबारक बीमारी, वासना की कड़ियाँ

गुप्त धन, भाग दो (1962) –

पुत्र-प्रेम, इज्जत का खून, होली की छुट्टी, नादान दोस्त, प्रतिशोध, देवी, खुदी, बड़े बाबू, राष्ट्र का सेवक, आखिरी तोहफा, कातिल बोहनी बंद दरवाजा, तिरसूल, स्वांग, शैलानी बंदर, नदी की नीति- निर्वाह, मंदिर और मस्जिद, प्रेम सूत्र, तांगे वाले की बड़, शादी की वजह, मोटेराम जी शास्त्री, पर्वत-यात्रा, कवच, दूसरी शादी, स्तोत्र, देवी, पैपुजी, क्रिकेट मैच, कोई दुःख न हो तो बकरी ही खरीद लो।

नोट:- मुंशी प्रेमचंद की कुछ कहानियाँ उनके कहानी संग्रहों में बार-बार प्रकाशित हुई हैं, इसलिए मन में संशय न रखें।

Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद से संबंधित आलोचना ग्रंथ –


प्रेमचंद – राम विलास शर्मा
प्रेमचंद और उनका युग – राम विलास शर्मा

‘प्रेमचंद का अप्राप्य साहित्य’ – कमल किशोर गोयनका
प्रेमचंद विश्वकोश – कमल किशोर गोयनका (संपादक)

प्रेमचंद: सामंत का मुंशी – धर्मवीर भारती
प्रेमचंद की नीली आँखें – धर्मवीर भारती

Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद जीवनी से संबंधित रचनाएँ –

प्रेमचंद घर में- 1

944 ई. में प्रकाशित यह पुस्तक प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी द्वारा लिखी गई है जिसमें उनके व्यक्तित्व के घरेलू पक्ष को उजागर किया है। 2005 ई. में प्रेमचंद के नाती प्रबोध कुमार ने इस पुस्तक तो दोबारा संशोधित करके प्रकाशित कराया।

प्रेमचंद कलम का सिपाही-

1962 ई. में प्रकाशित प्रेमचंद के पुत्र अमृतराय द्वारा लिखी गई यह प्रेमचंद वृहद जीवनी है जिसे प्रामाणिक बनाने के लिए उन्होंने प्रेमचंद के पत्रों का बहुत उपयोग किया है।

कलम का मज़दूर:प्रेमचन्द-

1964 ई. में प्रकाशित इस कृति की भूमिका रामविलास शर्मा के अनुसार-“29 मई, 1962” में लिखी गई थी किंतु उसका प्रकाशन बाद में किया गया था। मदन गोपाल द्वारा रचित यह जीवनी मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई थी जिसका बाद में हिंदी रूपांतरण भी प्रकाशित हुआ। यह प्रेमचंद के परिवार के बाहर के व्यक्ति द्वारा रचित जीवनी है जो प्रेमचंद संबंधी तथ्यों का अधिक तटस्थ रूप से मूल्यांकन करती है। स्रोत – wikipedia

मुंशी प्रेमचंद द्वारा संपादित पत्रिकाएं –

प्रेमचंद ने ‘जागरण’ और ‘हंस’ नामक मासिक पत्रिकाओं का संपादन किया था, ‘जमाना’ नामक उर्दू पत्रिका में वे ‘नवाबराय’ नाम से लिखा करते थे, इन्होंने सरस्वती प्रेस भी चलाया था।

Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद जी से संबंधित परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य

  • मुंशी प्रेमचंद जी ने स्वयं को ‘आदर्शोन्मुख यथार्थवादी’ लेखक माना है।
  • प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।
  • धनपतराय को प्रेमचंद नाम ‘दयाराम निगम’ द्वारा दिया गया था।
  • उर्दू में प्रेमचंद ‘नवाबराय’ नाम से लिखा करते थे।
  • बंगाल के विख्यात उपन्यासकार ‘शरत चंद्र चटोपाध्याय’ ने प्रेमचंद को “उपन्यास सम्राट” कहकर संबोधित किया था।
  • परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य – मुंशी प्रेमचंद

  • प्रेमचंद का उर्दू में पहला कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ है।
  • प्रेमचंद का हिन्दी में लिखा पहला ‘कहानी संग्रह’ ”सप्त सरोज’ है।
  • प्रेमचंद का हिन्दी में लिखा पहला ‘कहानी संग्रह’ ”सप्त सरोज’ है।
  • इनकी हिन्दी में लिखी पहली कहानी ‘पंच परमेश्वर’ मानी जाती है और अंतिम कहानी ‘कफन’।
  • प्रेमचंद नाम से इनकी पहली कहानी ‘बड़े घर की बेटी है।
  • डॉ. गणपति चंद्र गुप्त ने इनकी पहली कहानी ‘पंच परमेश्वर’ मानी है।
  • डॉ. नगेंद्र जी के अनुसार इनकी पहली कहानी ‘सौत’ है।
  • कमल किशोर गोयनका’ के अनुसार इनकी पहली कहानी ‘परीक्षा (1914) और अंतिम कहानी ‘क्रिकेट मैच’ (1937) है।
  • परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य – मुंशी प्रेमचंद

  • प्रेमचंद ने अपने जीवन में 300 से अधिक कहानियाँ और 18 से अधिक उपन्यास लिखे, उनकी इसी क्षमता के कारण इन्हें ‘कलम का मजदूर’ कहा जाता है।
  • असरार माअविद’ प्रेमचंद का उर्दू में लिखा प्रथम उपन्यास है, जिसका हिन्दी रूपांतरण ‘देवस्थान रहस्य’ है।
  • सेवासदन’ प्रेमचंद का पहला प्रौढ़ हिन्दी उपन्यास है, जिसका उर्दू नाम ‘बाजारे हुस्न’ था।
  • प्रेमचंद का हिन्दी में मूल रूप से लिखा गया उपन्यास ‘कायाकल्प'(1926) है।
  • किसान जीवन पर लिखा गया इनका पहला उपन्यास ‘प्रेमाश्रम’ है।
  • प्रेमचंद का अंतिम पूर्ण उपन्यास ‘गोदान'(1936) है और अंतिम अपूर्ण उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ है।
  • मंगलसूत्र उपन्यास को उनके पुत्र ‘अमृतराय’ द्वारा पूरा किया गया जो 1948 ई. में प्रकाशित हुआ।

Munshi Premchand मुंशी प्रेमचंद के अनमोल वचन

दोस्तों मैंने पूरी कोशिश की है Munshi Pemchand मुंशी प्रेमचंद जी से सम्बंधित वो सभी जानकारी आप तक पहुँचाने की जो बेहद जरूरी थीं यदि आपने परीक्षा की दृष्टि से इस लेख को पढ़ा है तो आपको बहुत मदद मिलेगी, अगले लेख में मैं मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं को उनके वर्ण्य विषय, पात्र परिचय के साथ विस्तारपूर्वक आप तक पहुँचाऊँगा |

वीडियो के माध्यम से आप मुंशी प्रेमचंद की जीवनी देख-सुन सकते हैं – मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

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1 comment

hindi shayari July 9, 2021 - 11:21 am

VERY NICE

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