सूरदास जी की जयंती विशेष पर लेख सूरदास परिचय “देखन कौ घनश्याम…
भक्ति काल
अष्टछाप के आठ कवियों में चार वल्लभाचार्य जी के शिष्य हैं और चार विट्ठल नाथ जी के शिष्य । वल्लभाचार्य जी के चार शिष्य हैं – 1. सूरदास 2. परमानंद दास 3. कुम्भनदास ४. कृष्णदास । विट्ठल नाथ जी के चार शिष्य हैं – 1. नंददास 2. चतुर्भुजदास 3. गोविंदस्वामी ४. छीतस्वामी । इन आठ कवियों का समूह ही ‘अष्टछाप’ नाम से प्रसिद्ध है ।
हिंदी साहित्य की विभिन्न कसौटियों पर अपने कृतित्व पर भली-भांति खरे उतरने वाले ‘गोस्वामी तुलसीदास’ की जीवनी एवं उनकी साहित्यिक विशेषता का वर्णन करना सहज नहीं है। यदि उनकी ही भाषा में कहा जाए, तो – “सहस्र मुख न जाए बखानी ” अतः ऐसे कृतित्वकार के व्यक्तित्व एवं जीवन-यात्रा से पहले यह समझना आवश्यक है कि आखिर कैसे एक साधारण ‘रामबोला’ नामक व्यक्ति कविकुल चूड़ामणि ‘तुलसीदास’ बन गया।
आप जानते हैं तुलसीदास जी ‘भक्ति काल’ के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक हैं और हिंदी साहित्य की प्रतियोगी परीक्षाओं में तुलसीदास जी के सम्बन्ध में प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं, उनमें से कुछ विशेष प्रश्न तुलसीदास के विषय में कहे गए विद्वानों के कथन हैं जिन्हें आपको अवश्य ही संज्ञान में रखना चाहिए
‘भ्रमरगीत’ हिंदी साहित्य की एक विशेष काव्य-परम्परा है, जिसमें निर्गुण का खंडन कर सगुण का मंडन करना एवं ज्ञान/योग की तुलना में भक्ति/प्रेम को श्रेष्ठ ठहराना निहित है | पूरी जानकारी ⇒