हिंदी के प्रख्यात आलोचकों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण तथ्य हिंदी के प्रख्यात…
हिन्दी साहित्य
चंद्रदेव से मेरी बातें कहानी की लेखिका राजेन्द्र बाला घोष उर्फ बंग महिला हैं । पत्रात्मक शैली (प्रविधि) में लिखी यह हिन्दी की प्रथम कहानी है । इस कहानी का प्रकाशन सर्वप्रथम हिन्दी की कालजयी पत्रिका ‘सरस्वती’ में १९०४ ई० में हुआ था ।
अष्टछाप के आठ कवियों में चार वल्लभाचार्य जी के शिष्य हैं और चार विट्ठल नाथ जी के शिष्य । वल्लभाचार्य जी के चार शिष्य हैं – 1. सूरदास 2. परमानंद दास 3. कुम्भनदास ४. कृष्णदास । विट्ठल नाथ जी के चार शिष्य हैं – 1. नंददास 2. चतुर्भुजदास 3. गोविंदस्वामी ४. छीतस्वामी । इन आठ कवियों का समूह ही ‘अष्टछाप’ नाम से प्रसिद्ध है ।
हिंदी साहित्य की विभिन्न कसौटियों पर अपने कृतित्व पर भली-भांति खरे उतरने वाले ‘गोस्वामी तुलसीदास’ की जीवनी एवं उनकी साहित्यिक विशेषता का वर्णन करना सहज नहीं है। यदि उनकी ही भाषा में कहा जाए, तो – “सहस्र मुख न जाए बखानी ” अतः ऐसे कृतित्वकार के व्यक्तित्व एवं जीवन-यात्रा से पहले यह समझना आवश्यक है कि आखिर कैसे एक साधारण ‘रामबोला’ नामक व्यक्ति कविकुल चूड़ामणि ‘तुलसीदास’ बन गया।
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आप जानते हैं तुलसीदास जी ‘भक्ति काल’ के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक हैं और हिंदी साहित्य की प्रतियोगी परीक्षाओं में तुलसीदास जी के सम्बन्ध में प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं, उनमें से कुछ विशेष प्रश्न तुलसीदास के विषय में कहे गए विद्वानों के कथन हैं जिन्हें आपको अवश्य ही संज्ञान में रखना चाहिए
‘भ्रमरगीत’ हिंदी साहित्य की एक विशेष काव्य-परम्परा है, जिसमें निर्गुण का खंडन कर सगुण का मंडन करना एवं ज्ञान/योग की तुलना में भक्ति/प्रेम को श्रेष्ठ ठहराना निहित है | पूरी जानकारी ⇒
सिद्धों की वाममार्गी भोगप्रधान योग–साधना पद्धति की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप आदिकाल में जिस ‘हठयोग–साधना’ पद्धति का आविर्भाव हुआ, हिंदी साहित्य में उसे ही ‘नाथ पंथ/सम्प्रदाय’ के नाम से जाना जाता है तथा इन नाथों से द्वारा रचा गया साहित्य ‘नाथ साहित्य’ कहा जाता है ।
आदिकालीन साहित्य में उपलब्ध होने वाली प्रवृत्तियाँ तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में देखी जानी चाहिए | इस काल में प्रमुख रूप से रासो साहित्य की रचना हुई अतः आदिकालीन साहित्य की प्रवृत्तियाँ रासो साहित्य की प्रवृत्तियाँ ही मानी जा सकतीं हैं |
इन ग्रंथों में पाई जाने वाली सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन निम्न शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है –
ऐतिहासिकता का महत्त्व –
(आदिकालीन साहित्य की परिस्थितियाँ एवं विशेषताएँ) भूमिका – आदिकाल साहित्य की परिस्थितियाँ…